Mahakumbh 2025:  महाकुंभ में हो चुके हैं 3 अमृत स्नान, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के स्नान क्यों नहीं माने जा रहे हैं अमृत स्नान, जानिए इसकी वजह 

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Magh purnima and Mahashivratri snan successful Mahakumbh: संगमनगरी में जारी इस वर्ष के महाकुंभ (Mahakumbh-2025) में तीन अमृत स्नान हो चुके हैं. पहला मकर संक्राति को 14 जनवरी मंगलवार को, दूसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या को 29 जनवरी बुधवार को और तीसरा व अंतिम अमृत स्नान का आयोजन बसंत पंचमी के दिन 3 फरवरी सोमवार को किया गया. बसंत पंचमी को हुए तीसरे अमृत स्नान में बड़ी संख्या में लोगों ने स्नान किया. 13 जनवरी को शुरू हुआ महाकुंभ पूरे 45 दिन चलेगा और 26 फरवरी को समाप्त होगा. हालांकि इस बार केवल तीन दिन के स्नान को ही अमृत स्नान (Amrit snan) की मान्यता दी गई है. माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के स्नान (Magh purnima and Mahashivratri snan) को अमृत स्नान की मान्यता नहीं मिली है. इन दोनों दिन श्रद्धालु संगम स्नान तो करेंगे, लेकिन उन्हें अमृत स्नान का दर्जा नहीं मिलेगा. आइए जानते हैं क्यों माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दिन को अमृत स्नान नहीं माना जा रहा है.

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महाकुंभ के अमृत स्नान की तिथियां (Dates of amrit snan successful Mahakumbh-2025)

इस बार 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ में 14 जनवरी मंगलवार को मकर संक्राति, 29 जनवरी बुधवार को मौनी अमावस्या, 3 फरवरी सोमवार को बसंत पंचमी को अमृत स्नान हो चुके हैं. इसके बाद 12 फरवरी बुधवार को माघ पूर्णिमा और 26 फरवरी बुधवार को महाशिवरात्रि को स्नान होगा, लेकिन उन्हें अमृत स्नान नहीं माना जाएगा.

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माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि को क्यों नहीं माना जाएगा अमृत स्नान (Why magh purnima and mahashivratri are not amrit snan)

महाकुंभ में अमृत स्नान की तिथियां ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह नक्षत्रों को स्थिति को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती हैं. ज्योतिष गणना के अनुसार अमृत स्नान के लिए सूर्य ग्रह मकर राशि में और गुरु ग्रह वृषभ राशि में होना जरूरी होता है. इन ग्रहों के सही जगह पर होने पर ही स्नान को अमृत स्नान की मान्यता दी जाती है. मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी की तिथियों पर गुरु ग्रह वृषभ राशि और सूर्य देव मकर राशि में विराजमान थे. माघ पूर्णिमा के दिन देवगुरु बृहस्पति तो वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे वहीं सूर्यदेव कुंभ राशि में गोचर कर जाएंगे इसलिए माघ पूर्णिमा के दिन होने वाला स्नान अमृत स्नान नहीं होकर सामान्य स्नान के रूप में माना जाएगा. महाशिवरात्रि के दिन भी सूर्य ग्रह कुंभ राशि में विराजित रहेंगे तो इस दिन का स्नान भी अमृत स्नान नहीं माना जाएगा. 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के स्नान के साथ ही महाकुंभ का समापन भी होगा.

 नागा साधु नहीं करेंगे स्नान

शंकराचार्य ने धर्म के रक्षक के तौर पर नागा साधुओं का संगठन तैयार किया था. उन्हें विशेष दर्जा देने के लिए कुंभ में उन्हें पहले स्नान करने और उनके स्नान को शाही स्नान का दर्जा दिया गया था. शाही स्नान को अब अमृत स्नान कहा जाता है. इस बार महाकुंभ में बसंत पंचमी के बाद की स्नान तिथियों पर ग्रहों के अमृत स्नान के अनुसार नहीं होने के कारण अब अमृत स्नान नहीं होंगे और नागा साधु बसंत पंचमी के अमृत स्नान के बाद अपने-अपने धाम या संगठन को लौटने लग जाएंगे.

माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर स्नान का महत्व

भले ही माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर संगम में स्नान को अमृत स्नान की मान्यता नहीं मिलेगी, लेकिन इन दोनों ही तिथियों को स्नान धार्मिक महत्व है. इस बार माघ पूर्णिमा पर सौभाग्य और शोभन योग बनने वाला है और अश्लेषा और मघा नक्षत्र के संयोग का भी निर्माण होगा. इन योग में महाकुंभ में स्नान करने वालों को अक्षय फल की प्राप्ति होगी. 26 फरवरी को ही महाशिवरात्रि पर शिव योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग जैसे दुर्लभ योग बन रहे है. इन्हीं योगों में संग स्नान से सभी पाप मिट जाएंगे और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होगी.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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