NDA और महागठबंधन में सीट शेयरिंग की जानिए पेचीदगियां, कहां-कहां फंसेगी गाड़ी?

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Last Updated:February 07, 2025, 10:42 IST

Bihar Politics: बिहार में एनडीए के घटक दल साझा कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं. उनके बड़े नेताओं के दौरे हो रहे हैं. हालांकि सीटों के लिए उनमें रस्साकसी भी शुरू है. महागठबंधन में आरजेडी को कांग्रेस आंख दिखा रही है....और पढ़ें

NDA और महागठबंधन में सीट शेयरिंग की जानिए पेचीदगियां, कहां-कहां फंसेगी गाड़ी?

बिहार में चुनावी आहट तेज होती जा रही है. (फोटो PTI)

हाइलाइट्स

  • एनडीए में सीट बंटवारे पर खींचतान जारी.
  • महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी में तनाव.
  • चिराग पासवान और मांझी की सीटों की मांग.

पटना: बिहार में चुनावी आहट तेज होती जा रही है. बड़े नेताओं की आवाजाही शुरू हो गई है. राजनीतिक यात्राओं का दौर चल रहा है. इस महीने यह समाप्त हो जाएगा. माना जा रहा है कि दिल्ली चुनाव में भाजपा को कामयाबी मिली तो बिहार में अप्रैल-मई में विधानसभा का चुनाव हो सकता है. परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए तो निर्धारित समय पर यानी सितंबर-अक्टूबर में चुनावी प्रक्रिया पूरी होगी. समय पूर्व चुनाव की आहट इसलिए भी महसूस की जा रही है कि हर गठबंधन में सीट बंटवारे की बात गूंजने लगी है.

चिराग को 40 तो मांझी को 20 सीटें चाहिए
एनडीए में अभी पांच दल हैं. भाजपा और जेडीयू के अलावा जीतन राम मांझी की हम (HAM), चिराग पासवान की एलजेपीआर (LJPR) और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम (RLM) शामिल हैं. मुकेश सहनी की वीआईपी (VIP) की भी एनडीए में वापसी की चर्चा हो रही है. पशुपति पारस की आरएलजेपी (RLJP) ने घोषित तौर पर अभी तक न एनडीए छोड़ा है और न एनडीए ही उन्हें बाहर बताता है. यानी अटकलों और संकेतों से परे पारस एनडीए में बने रहने का फैसला लेते हैं तो टिकट के वे भी दावेदार होंगे ही. जीतन राम मांझी ने अभी से 20 सीटों की दावेदारी पेश कर दी है. दावेदारी पुख्ता करने के लिए वे मंत्री पद छोड़ने तक की चेतावनी एनडीए को दे चुके हैं. चिराग भी 40 से कम पर शायद ही मानें. RLM के उपेंद्र कुशवाहा का मुंह अभी नहीं खुला है. जेडीयू और भाजपा की नैतिकता से वे इस कदर दबे हुए हैं कि मुंह खोलेंगे भी तो अड़ेंगे नहीं. बिना किसी संख्या बल के वे राज्यसभा का मेंबर इन्हीं दो दलों की कृपा से बने हुए हैं. खैर, एनडीए में इस मुद्दे पर खटपट तो होनी ही है.

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संख्या के साथ क्षेत्रों का बंटवारा भी कठिन है
एनडीए को दो मुश्किलों से जूझना पड़ेगा. पहली समस्या तो सीटों की संख्या बांटने में होगी. एनडीए में इस बार एलजेपीआर और आरएलएम भी हैं, जिनका कोई सदस्य मौजूदा विधानसभा में नहीं है. चिराग पासवान की एलजेपीआर पिछली बार अकेले लड़ी थी. यानी जेडीयू और बीजेपी को इस बार एलजेपीआर और आरएलएम के लिए भी सीटें देनी होगी. मुकेश सहनी अगर आए और पशुपति पारस भी एनडीए में बने रहे तो उन्हें भी कुछ सीटें देनी ही पड़ेंगी. सहनी के पिछली बार चार उम्मीदवार एनडीए में रहते जीते थे, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे. जेडीयू और बीजेपी कम से कम 100-100 सीटें पर तो लड़ेंगे ही. पिछली बार बीजेपी को 121 और जेडीयू को 122 सीटें मिली थीं. जेडीयू ने अपने कोटे से 7 सीटें हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को दी थीं. बीजेपी ने अपनी सीटों में से 11 मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को दी थीं. नए साथियों के आने से सीटों के बंटवारे के साथ क्षेत्रों का चयन भी कम मुश्किल का काम नहीं होगा.

महागठबंधन में भी कम रार नहीं दिख रहा
आश्चर्य यह कि सत्ता के लिए बेचैन महागठबंधन भी इसी परेशानी से जूझ रहा है. कांग्रेस पिछली बार की तरह इस बार भी 70 सीटों का टेर छेड़ चुकी है. आरजेडी उसे 30 से अधिक देने के मूड में नहीं है. वाम दलों के दावे भी होंगे. पिछली बार वाम दलों में सीपीआई (एमएल) का प्रदर्शन बेहतर ही था. महागठबंधन में मिलीं 19 में 12 सीटें माले ने जीत ली थीं. 2-2 सीटें सीपीआई और सीपीएम ने जीती थीं. इस बार तो सीपीआई एमएल का एक एमपी भी बन गया है. यानी वाम दलों का जनाधार बढ़ा है तो इस बार अधिक सीटों की उनकी दावेदारी तो बनती ही है. मुकेश सहनी की पार्टी इस बार महागठबंधन में आ गई है. मुकेश सहनी महागठबंधन की सरकार में डेप्युटी सीएम बनने का सपना पाले हुए हैं. तेजस्वी यादव ने भी ऐसा संकेत लोकसभा चुनाव के दौरान दिया था.

गठबंधनों में सीटें तय करेंगे RJD व JDU
बिहार में दो राष्ट्रीय पार्टियां चुनाव मैदान में होंगी. इनमें एक तो देश-दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा है. दूसरी देश की सबसे पुरानी और गौरवशाली अतीत वाली पार्टी कांग्रेस है. आश्चर्य की बात यह कि बिहार में इन दोनों पार्टियों की स्थिति वर्षों से परजीवी की है. भाजपा नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के इशारे पर नाचने को मजबूर है तो आरजेडी के इशारे पर थिरकने के लिए कांग्रेस बाध्य है. भाजपा तो जेडीयू के आगे इतनी लाचार है कि विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद वह सरकार बनाने का साहस नहीं जुटा सकी. उसे सदन में तीसरे नंबर की पार्टी जेडीयू के नेता नीतीश कुमार को सीएम बनाना पड़ा.

एनडीए में सीट बंटवारे का संभावित फार्मूला
एनडीए में सीटों के बंटवारे के लिए दो फार्मूलों की चर्चा सियासी गलियारों में चल रही है. पहले फार्मूले के तहत जेडीयू और बीजेपी बराबर-बराबर सीटें बांट लें. एक सीट का अंतर हो सकता है. यानी जेडीयू के हिस्से 122 तो बीजेपी के पास 121 सीटें रहेंगी. दोनों बड़ी पार्टियां सहयोगी दलों को अपने-अपने हिस्से से सीटें देकर मनाएंगी. जेडीयू के जिम्मे HAM और RLM की सीटें रहेंगी. भाजपा चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस से निपटे (अगर पारस एनडीए में रहते हैं. दूसरा फार्मूला यह बना है कि भाजपा 100 और जेडीयू 101 पर लड़ें. बाकी बचीं 42 सीटों में सहयोगियों को निपटाया जाए. मांझी को पिछली बार जितनी 7 सीटों से मनाया जाए. तर्क होगा कि चार पर ही जीते थे. चिराग के उम्मीदवार जिन 12 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे और जीतने वाले एक विधायक, जो बाद में जेडीयू में शामिल हो गए, के हिसाब से एलजेपीआर की 13 सीटें बनती हैं. उन्हें 15 देकर पटाया जाए. आरएलएम को चार-पांच सीटें देकर मना लिया जाए. मुकेश सहनी और पारस के इंतजार में 15 सीटें रहेंगी. सहनी आए तो पिछली बार जितनी 11 सीट ही मिल सकती हैं. यानी पारस के लिए चार बचती हैं.

महागठबंधन में कैसे बंटेंगी साथी दलों में सीटें
महागठबंधन में आरजेडी इस बार अपने लिए अनुकूल अवसर देख रहा है. तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि टिकट सोच-समझकर ही दिया जाएगा. यानी आरजेडी सहयोगी दलों को इस बार सिर्फ हिस्सेदार होने के कारण सीटें नहीं देने वाला है. इससे सबसे अधिक घबराहट कांग्रेस में है, जिसने पिछली बार 70 सीटों का हिस्सा लेकर महज 19 पर ही जीत हासिल की थी. इस गलती से तेजस्वी सीएम बनने-बनते रह गए. कांग्रेस में यह घबराहट दिख भी रही है. तेवर तो कांग्रेस ऐसे दिखा रही है कि उसके बिना महागठबंधन की कामयाबी असंभव है. परफार्मेंस के हिसाब से सीपीआई (एमएल) की दावेदारी इस बार अधिक सीटों की बनती है.

गठबंधनों में सीटों के मुद्दे पर पड़ने लगी गांठ
एनडीए में मांझी को 20 और चिराग को 40 सीटें चाहिए. दोनों ने अपने अंदाज में संकेत भी दे दिए हैं. चिराग पिछली बार सीटों के सवाल पर ही बिदके थे. एनडीए के खिलाफ मैदान में कूद गए थे. नीतीश कुमार को तकरीबन तीन दर्जन सीटें गंवाने पर बाध्य कर दिया था. जीतन राम मांझी ने तो मंत्री पद छोड़ने तक की धमकी दे डाली है. मांझी मान भी जाएं तो चिराग को संभालना मुश्किल है. यही हाल महागठबंधन में भी है. कांग्रेस के तेवर बगावती लग रहे हैं. इसलिए दोनों गठबंधनों में सीटों का बंटवारा किसी जंग को जीतने से कम नहीं होगा. गठबंधन की गांठें खुल जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं.

First Published :

February 07, 2025, 10:42 IST

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