इंसान बुरे से बुरे वक्त में भी जिंदगी से आस लगाए रहता है. उसे हमेशा कुछ बेहतर होने की उम्मीद होती है. लेकिन, कई दफा इंसान खुद के सामने लाचार हो जाता है. वह अपने बारे में सोच-विचार करने तक की क्षमता खो देता है. वह शारीरिक-मानसिक रूप से पूरी तरह अक्षम हो जाता है. वह पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो जाता है. ऐसी स्थिति में समाज-परिवार को क्या करना चाहिए? ये बेहद संवेदनशील सवाल हैं. क्या परिवार को उस लाचार व्यक्ति के जीवन के बारे में फैसला लेने का अधिकार मिलना चाहिए? क्या ऐसे लोगों के जीवन को खत्म करने का अधिकार परिवार को मिलना चाहिए? इसी सवाल पर शुक्रवार को ब्रिटेन की संसद में बहस शुरू हो रही है.
दरअसल, परिवार को कई बार ऐसी स्थिति से गुजरना पड़ता है. परिवार का कोई सदस्य किसी आसाध्य बीमारी की वजह से ब्रेड डेड जैसी स्थिति में पहुंच जाता है. वह चेतना खो देता है. वह जिंदा लाश बनकर रह जाता है. ऐसी स्थिति में उसे और उसके परिवार दोनों बेइंतहा कष्ट झेलने पड़ते हैं. ऐसे में समाज का एक तबका मानता है कि ऐसी स्थिति में परिवार के सबसे करीबी को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वह उस व्यक्ति के जीवन के बारे में फैसला ले. मेडिकल साइंस की सहायता से ऐसे लाचार व्यक्ति की जिंदगी खत्म कर देनी चाहिए. इससे उस व्यक्ति को बेइंतहा कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी और परिवार को भी राहत मिलेगी. हालांकि यह एक बेहद भावनात्मक और कठोर फैसला है.
‘अस्सिटेट डाइंग’ क्या है
इसको ‘अस्सिटेट डाइंग’ नाम दिया गया है. यानी किसी सहयता से मृत्यु को प्राप्त करना. इसे आत्महत्या की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. ब्रिटेन ही नहीं दुनिया के हर समाज में इंसान को ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है. यूरोप के कई देशों में ‘अस्सिटेट डाइंग’ का प्रावधान है. इसमें कनाडा, न्यूजीलैंड और अमेरिका के 10 राज्य शामिल हैं. ऐसी किसी परिस्थिति में फंसे लोग मौत को गले लगाने के लिए उन देशों में चले जाते हैं. इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले 1967 के अबॉर्शन कानून का उदाहरण देते हैं. ब्रिटेन में करीब पांच दशक पहले अबॉर्शन को कानूनी मान्यता दे दी गई थी. वहां 1969 में फांसी की सजा का प्रावधान भी खत्म कर दिया गया था.
ऐसे ही एक कानून को लेकर ब्रिटेन की संसद 2015 में भी विचार कर चुकी है. उस वक्त संबंधित विधेयक के पक्ष में केवल 118 और विरोध में 330 वोट पड़े थे. मौजूदा पीएम केर स्टार्मर उस वक्त सांसद थे और उन्हें इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था. मौजूदा लेबर पार्टी की सरकार ने अपने सांसदों को अपने विवेक से वोट करने को कहा है. हर सांसद अपनी सोच और राय से वोट डालेंगे.
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FIRST PUBLISHED :
November 28, 2024, 10:45 IST