प्रतीकात्मक तस्वीर
पश्चिम चम्पारण. खेत में लगी फसलों का पशुओं द्वारा चर लिया जाना या फिर कीट-पतंगों द्वारा बर्बाद कर दिया जाना, किसानों के लिए आम बात है. लेकिन, आर्थिक दृष्टिकोण से बेहद नुकसानदायक समस्या है. लाख जुगाड के बावजूद भी पशुओं एवं कीटों से फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है. ऐसे में कैसा होगा यदि हम आपको कुछ ऐसी फसलों की जानकारी दे दें, जिसे ना तो कोई पशु चर सकता है और ना ही कीटों से नुकसान पहुंच सकता है. इतना ही नहीं, इन फसलों की खेती आपको कुछ ही महीने में इतना आर्थिक लाभ दे सकती है, जितना अन्य फसलों से असंभव है.
सुनने में ये थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन जानकारों की माने तो, मेडिसिनल प्लांट्स ( औषधीय पौधों ) की खेती में आपको बिना किसी नुकसान के बेहद अच्छी आमदनी का मौका मिलता है. चुकी मेडिसिनल प्लांट्स की डिमांड अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है, इसलिए सर्दियों में आप इसकी खेती कर खुद को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से भी जोड़ सकते हैं.
हर मौसम में बनी रहती है डिमांड
ज़िले के माधोपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में कार्यरत, कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि मेडिसिनल प्लांट्स की खेती में किसानों को चौतरफा लाभ मिलता है. तुलसी, लेमन ग्रास, मेंथा, मूसली, शतावर, मोरिंगा इत्यादि फसलों की डिमांड दुनिया भर के देशों में है. इनका उपयोग कई प्रकार की दवाईयों, सौंदर्य प्रसाधन, खाद्य पदार्थ तथा स्वास्थ्य संबंधी वस्तुओं को बनाने में किया जाता है. इसलिए, इन फसलों की डिमांड हर मौसम में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनी रहती है.
आवारा पशुओं एवं कीटों का डर नहीं
औषधीय फसलों की खेती का सबसे बेहतरीन पहलू यह है कि इन्हें ना तो पशु अपना चारा बनाना पसंद करते हैं और ना ही इन पर किसी प्रकार के कीटों का प्रकोप पड़ता है. इतना ही नहीं, अन्य फसलों की तुलना में औषधीय पौधों को मौसम की मार भी झेलनी नहीं पड़ती है. ऐसे में फसल के बर्बाद होने की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है. किसानों को बस इनके तैयार होने तक का इंतजार करना रहता है. खरीदारी के लिए व्यापारी खुद चलकर घर तक आते हैं.
ये किसान कर रहे हैं औषधीय फसलों की खेती
यदि इन सभी पहलुओं पर विचार किया जाए, तो शायद ही ऐसा कोई किसान होगा जो औषधीय फसलों की खेती नहीं करना चाहेगा. पश्चिम चम्पारण जिले के कुछ किसानों ने इन औषधीय पौधों की खेती बड़े स्तर पर की है. इस वजह से उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहचान भी मिली है. मझौलिया प्रखंड के रुलहीं गांव के रहने वाले किसान परशुराम तथा रामाशंकर शर्मा, पिछले डेढ़ दशकों से औषधीय फसलों की खेती करते आ रहे हैं. इनमें मेंथा, मैंथामिंट, सफेद मूसली, पामा रोज़ा, अश्वगंधा, शतावर, तुलसी, लेमन ग्रास इत्यादि शामिल हैं. कृषकों का कहना है कि औषधीय फसलों ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है.
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FIRST PUBLISHED :
November 28, 2024, 20:43 IST