इसे सिर्फ खेती मत समझिए, पैसा बनाने का आसान तरीका है! बिक्री होती है लाखों में

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Last Updated:January 18, 2025, 13:06 IST

Sweet murphy cultivation: गुजरात के एक छोटे से गांव ने खेती के अनोखे अंदाज से अपनी पहचान बनाई है. यहां की विशेष फसल न सिर्फ किसानों की आर्थिक स्थिति सुधार रही है, बल्कि आसपास के गांवों के लिए भी प्रेरणा बन रही है.

इसे सिर्फ खेती मत समझिए, पैसा बनाने का आसान तरीका है! बिक्री होती है लाखों में

शकरकंद खेती

गुजरात के मेहसाणा जिले का चलुवा गांव शकरकंद की खेती के लिए मशहूर हो गया है. पिछले 40 सालों से यहां के किसान इस खेती में जुटे हैं, जो अब उनकी पहचान बन गई है. गांव के करीब 90 प्रतिशत लोग शकरकंद की खेती कर रहे हैं. लगभग हजार बीघा जमीन पर हर साल शकरकंद उगाई जाती है. हालांकि, इस साल अत्यधिक बारिश ने उत्पादन पर असर डाला है, लेकिन किसानों के हौसले अभी भी बुलंद हैं.

शकरकंद क्यों बनी किसानों की पहली पसंद?
फसलों में बीमारियां और कीटों की समस्या ने किसानों को वैकल्पिक फसलों की ओर रुख करने पर मजबूर किया. चलुवा गांव के किसान ठाकोर परबतजी जवानजी बताते हैं कि शकरकंद की खेती पशुपालन के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इसके बेल पशुओं को चारे के रूप में दिए जाते हैं. एक बीघा खेती पर करीब 15,000 रुपये का खर्च आता है, लेकिन मुनाफा 80,000 से 90,000 रुपये तक हो जाता है. यही वजह है कि आसपास के 15 गांवों में सबसे ज्यादा शकरकंद की खेती यहीं होती है.

बारिश ने डाला उत्पादन पर असर
इस साल बारिश के कारण खेती देरी से शुरू हुई, जिससे मिट्टी उतनी उपजाऊ नहीं रही. ठाकोर परबतजी बताते हैं कि उत्पादन में गिरावट आई है, लेकिन बाजार में 100 रुपये अधिक भाव मिलने से नुकसान की भरपाई हो रही है. फिलहाल प्रति बीघा 150 से 200 मण तक उत्पादन हो रहा है और किसानों को 400-500 रुपये प्रति 20 किलो का भाव मिल रहा है.

पारंपरिक फसलों से हटकर शकरकंद की ओर रुझान
किसान ठाकोर सुखाजी नैनाजी बताते हैं कि अरंडी, राई, और सौंफ की फसलों में बीमारियां और कीटों की समस्या आम हो गई थी. गेहूं का उत्पादन भी पहले जैसा नहीं रहा. ऐसे में शकरकंद एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरी. यह फसल कम समय में तैयार हो जाती है और मुनाफा भी अच्छा देती है. इसके साथ ही पशुओं के लिए पर्याप्त चारा भी उपलब्ध होता है.

स्थानीय व्यापारी ले रहे हैं जिम्मेदारी
गांव में शकरकंद निकालने का काम शुरू हो चुका है. मेहसाणा, विसनगर, पालनपुर और डीसा जैसे शहरों के व्यापारी खुद चलुवा गांव आकर शकरकंद खरीदते हैं. किसानों को बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती. इस व्यवस्था से समय और लागत दोनों की बचत होती है.

चलुवा गांव बना प्रेरणा का स्रोत
शकरकंद की खेती ने चलुवा गांव को एक नई पहचान दी है. यह न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि किसानों के लिए राहत का भी जरिया है. इस खेती ने साबित कर दिया है कि सही दिशा में मेहनत और सूझबूझ से खेती भी फायदे का सौदा बन सकती है.

First Published :

January 18, 2025, 13:06 IST

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