Last Updated:January 21, 2025, 13:59 IST
Aghori Sadhna: अघोरी साधना एक जटिल और रहस्यमयी प्रक्रिया है, जो बाहरी लोगों के लिए समझना मुश्किल है. यह एक ऐसी दुनिया है जो सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर शिव की आराधना में लीन है.
Aghori Sadhna: अघोरी साधना, एक रहस्यमयी और जटिल प्रथा है, जो हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रही है. प्रयागराज के महाकुंभ में अघोरी साधुओं की उपस्थिति ने इस जिज्ञासा को और बढ़ा दिया है. अघोर पंथ सिर्फ एक तंत्र क्रिया नहीं, बल्कि एक जीवनशैली, दर्शन और साधना है, जिसका अनुभव केवल अघोरी बनकर ही किया जा सकता है.
अघोरियों को दी जाती है दीक्षा
अखिल भारतीय अघोर अखाड़ा के राष्ट्रिय महासचिव स्वामी पृथ्वीनाथ के मुताबिक, अघोर का ज्ञान पुस्तकों में नहीं, बल्कि गुरु की सेवा और समर्पण से प्राप्त होता है. तीन सालों तक आश्रम में सेवा करने के बाद ही गुरु यह निर्णय लेते हैं कि शिष्य को दीक्षा दी जाए या नहीं. अघोरियों के बारे में कई भ्रांतियां प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही हैं. यह सच है कि अघोर पंथ में पहले बलि प्रथा थी, लेकिन अब यह केवल प्रतीकात्मक रूप में ही रह गई है.
श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना
अघोरी श्मशान घाटों में साधना करते हैं. यह साधना तीन तरह की होती है- श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना. शव साधना में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है. यह साधना कुछ विशेष स्थानों पर ही होती है, जहां आम लोगों का प्रवेश वर्जित होता है. अघोरी जलते हुए शव का मांस भी खाते हैं, जो उनकी तांत्रिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है. इसका उद्देश्य सांसारिक मोह, घृणा और भय को समाप्त करना है. अघोरी मानते हैं कि सब कुछ शिव है, और शरीर, चाहे जीवित हो या मृत, केवल पंचतत्वों का मिश्रण है. वे अपनी साधना से जीवन और मृत्यु के भेद को मिटाना चाहते हैं.
कैसे होते हैं अघोर
स्वामी पृथ्वीनाथ आगे बताते हैं, अघोर जिसका अर्थ है ‘जो घोर नहीं’ अर्थात् सरल, सहज और उलझनों से रहित. यह एक ऐसा मार्ग है, जो आडंबरों से परे, सीधे परमात्मा से मिलन का, ब्रह्मांड के परम सत्य को जानने का सीधा और सरल रास्ता है. अघोर का पथ घृणा, द्वेष और भय से मुक्त है. यह समभाव और करुणा का मार्ग है, जो साधक को आंतरिक शांति और परम आनंद की ओर ले जाता है. अघोर जीवन के हर पहलू को उसकी सहजता में स्वीकार करने का दर्शन है, जो हमें सृष्टि के रचयिता के साथ एकत्व का अनुभव कराता है. यह एक ऐसा मार्ग है जो जटिलताओं को त्याग कर सरलता में सत्य की खोज पर बल देता है.
काला जादू या तांत्रिक क्रिया
अघोरियों और काले जादू का संबंध एक जटिल विषय है. कुछ लोग मानते हैं कि अघोरी काले जादू का अभ्यास करते हैं, जबकि अन्य इस बात का खंडन करते हैं. इस विषय पर कई तरह की कहानियां और मिथक प्रचलित हैं.
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अघोर पंथ के अनुसार, वे किसी भी प्रकार के जादू-टोने में विश्वास नहीं रखते. उनका मानना है कि वे केवल भगवान शिव की आराधना करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग अपनाते हैं. अघोर अखाड़ा के महासचिव पृथ्वीराज ने भी इस बात पर जोर दिया है कि अघोरी काले जादू का अभ्यास नहीं करते हैं.
हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि कुछ अघोरी तांत्रिक क्रियाओं का अभ्यास करते हैं, जो काले जादू से मिलती-जुलती हैं. इन क्रियाओं का उद्देश्य लोगों को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करना होता है.
यह ध्यान रखना जरूरी है कि अघोरियों के बारे में कई तरह की गलत धारणाएं प्रचलित हैं. मीडिया और फिल्मों में उन्हें अक्सर नकारात्मक रूप से चित्रित किया जाता है. जबकि वास्तविकता यह है कि अघोरी एक रहस्यमय और जटिल पंथ है, जिसे समझना आसान नहीं है.
अघोरियों के पास कहां से आती है मानव खोपडी़ ?
अघोरियों के बारे में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, उनके बारे में गहराई से जानना और समझना ज़रूरी है. अघोरियों के पास मानव खोपड़ी कहां से आती है, यह एक रहस्यमयी प्रश्न है. मान्यता है कि ये खोपड़ियां उन साधकों की होती हैं, जिन्होंने जीते जी अपना देह त्यागने के बाद अपनी खोपड़ी अघोरियों को अर्पित करने की इच्छा व्यक्त की थी. कुछ मामलों में, ऐसा भी माना जाता है कि ये खोपड़ियां उन लोगों की होती हैं, जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है. इन खोपड़ियों को अघोरी पवित्र मानते हैं और इनका उपयोग वे अपनी साधना में करते हैं.
अघोरियों के लंबे बाल का रहस्य
अघोरियों के लंबे बाल भी एक रहस्य का विषय हैं. कुछ लोगों का मानना है कि वे भगवान शिव के सम्मान में अपने बाल बढ़ाते हैं, जो स्वयं जटाधारी हैं. कहा यह जाता है कि लंबे बाल उन्हें बाहरी दुनिया से अलग रखते हैं और उनकी एकाग्रता में सहायक होते हैं.
अघोरियों का अंतिम संस्कार
अघोर अखाड़ा के महासचिव स्वामी पृथ्वीनाथ ने अघोरियों की अंतिम संस्कार प्रक्रिया के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा कि जो बड़े गुरु होते हैं, उन्हें समाधि दी जाती है और उनकी पूजा की जाती है, जबकि अन्य अघोरियों का अंतिम संस्कार किया जाता है.
गुरु की सेवा
अघोरी बनने के लिए गुरु की सेवा और समर्पण जरूरी है. गुरु शिष्य को बीज मंत्र देते हैं, जिसकी साधना शिष्य के लिए जरूरी होती है. इस प्रक्रिया को हिरित दीक्षा कहा जाता है. इसके बाद गुरु शिष्य को शिरित दीक्षा देते हैं, जिसमें शिष्य के हाथ, गले और कमर पर काला धागा बांधा जाता है और कुछ नियमों का वचन लिया जाता है. अंत में, गुरु रंभत दीक्षा देते हैं, जिसमें शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का पूरा अधिकार गुरु को सौंपना होता है.
First Published :
January 21, 2025, 13:59 IST