क्या है डंकी रूट, जिसकी दर्दनाक कहानियां बयां कर रहे अमेरिका से लौटे भारतीय

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Donkey Route Image Source : INDIA TV डंकी रूट के जरिए अमेरिका जाने में दो साल से ज्यादा समय लग सकता है

अमेरिका ने 104 भारतीय नागरिकों को एयरफोर्स के विमान में बैठाकर भारत छोड़ दिया है। ये सभी लोग अवैध तरीके से अमेरिका में रह रहे थे। भारत लौटने के बाद ये लोग अपने मुश्किल जीवन की कहानियां बयां कर रहे हैं। इन सभी लोगों ने बताया कि कैसे ये लोग अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचे और इस दौरान उन्हें कितनी परेशानी हुई। अवैध तरीके से किसी देश में जाने के लिए डंकी रूट का इस्तेमाल किया जाता है। यहां हम बता रहे हैं कि डंकी रूट क्या है? इसका संचालन कैसे होता है और यह इतना खतरनाक क्यों है?

सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि किसी भी देश के नागरिक को दूसरे देश में जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा की जरूरत होती है। अगर दो देशों के बीच संबंध अच्छे हैं को वीजा की जरूरत नहीं होती, लेकिन पासपोर्ट जरूरी होता है। विदेश में पासपोर्ट के जरिए ही आपकी पहचान तय होती है। ठीक उसी तरह जैसे देश के अंदर आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज जरूरी होते हैं। वैसे ही विदेश में पासपोर्ट जरूरी होता है। जब कोई व्यक्ति अवैध तरीके से किसी देश के अंदर जाना चाहता है तो वह डंकी रूट का इस्तेमाल करता है।

क्या है डंकी रूट?

पंजाब में एक जगह से दूसरी जगह पर कूदने की क्रिया को 'डुंकी' कहते हैं। यहीं से 'डंकी रूट' शब्द चलन में आया। इस रास्ते के जरिए आप एक देश से दूसरे देश पहुंच जाते हैं और आधिकारिक तौर पर किसी को पता नहीं चलता कि आप किस देश में हैं। दूसरी कहानी यह भी कहती है कि अवैध तरीके से किसी देश जाने में लंबे समय तक गधे के समान पैदल चलना पड़ता है। इस वजह से भी इसे डंकी रूट (Donkey Route) कहते हैं। साल 2023 में आई शाहरुख खान की फिल्म 'डंकी' इसी पर आधारित है।

कैसे होता है संचालन?

डंकी रूट के जरिए अमेरिका जाने वाले लोगों ने बताया कि अवैध तरीके से किसी देश में जाना बेहद मुश्किल, जोखिम भरा और महंगा है। भारतीय नागरिक अवैध तरीके से अमेरिका जाने के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं। सिर्फ अमेरिका की बात करें तो एक से ज्यादा रास्तों के जरिए भारतीय लोग अमेरिका में अवैध तरीके से पहुंच सकते हैं। समय और सुविधा के हिसाब से अलग-अलग रूट का किराया भी कम-ज्यादा होता है। हालांकि, यात्रा शुरू होने से पहले ही पूरा पैसा देना पड़ता है। इसके बाद सफर शुरू होता है। सफर के दौरान एजेंट आपका रूट और अमेरिका पहुंचने का तरीका भी बदल देते हैं। इस समय यात्री के पास एजेंट की बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।

अगर किसी व्यक्ति को अवैध तरीके से यूरोप के किसी देश में जाना है तो वह यूरोपीय संघ के शेंगेन क्षेत्र के लिए पर्यटक वीजा ले सकता है। इस वीजा के जरिए 26 यूरोपीय देशों में बिना किसी रोक-टोक के आवाजाही कर सकता है। इसके बाद वह एजेंट की मदद से अवैध तरीके से इंग्लैंड या किसी अन्य देश में घुस सकता है। ये एजेंट अक्सर फर्जी दस्तावेजों से लेकर शिपिंग कंटेनरों के माध्यम से तस्करी के लिए मोटी फीस लेते हैं। हर साल, हजारों भारतीय जान को जोखिम में डालकर डंकी रूट के जरिए अमेरिका, कनाडा या यूरोपीय देशों में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं।

संगठन में काम करते हैं एजेंट

डंकी रूट को संचालित करने वाले एजेंट संगठन में काम करते हैं। हर एजेंट का एक सीमा क्षेत्र होता है, जिसमें वह काम करता है। अगर किसी को भारत से अमेरिका जाना है तो पहले वह भारत में मौजूद किसी एजेंट से संपर्क करता है। यह एजेंट पैसे से लेकर रूट, समय, देश और फर्जी दस्तावेज से जुड़े काम कराता है। इसके बाद यात्री को दुबई या किसी अन्य जगह ले जाया जाता है। वहां, पहुंचने के बाद दूसरा एजेंट बस या टैक्सी के जरिए दूसरे स्थान पर ले जाता है। इस बीच नाव का इस्तेमाल भी होता है और यात्रियों को सैकड़ों किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ता है। पूरे रास्ते में कई बार एजेंट बदले जाते हैं। यात्री अवैध तरीके से कई देशों की सीमाएं पार करते हैं। अंत में अमेरिका पहुंचने पर यात्री को खुद ही अधिकारियों के सवालों के जवाब देने होते हैं।

डंकी रूट में हमेशा मुश्किल राह ही क्यों चुनी जाती है

हर देश अपनी सीमा पर सुरक्षा के लिए सैनिक तैनात करता है। देश के अंदर आने वाले सभी हवाई, पानी या सड़क के रास्ते पर सुरक्षाकर्मी तैनात होते हैं, जो बिना उचित दस्तावेज के किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं देते। ऐसे में डंकी रूट उन्हीं रास्तों से बना होता है, जिनमें सुरक्षाकर्मी न हों। इसी वजह से डंकी रूट में समुद्र, जंगल, रेगिस्तान और सुनसान रास्तों का उपयोग किया जाता है।

अमेरिका अचानक प्रवासियों को उनके देश क्यों भेज रहा

पिछले प्रशासन के दौरान अमेरिका में अवैध प्रवासियों के संबंध में ढीली नीतियों के कारण, मानव तस्करी एक ऐसे व्यवसाय में बदल गई थी, जिससे बहुत ज्यादा पैसे कमाए जा रहे थे। इस वजह से अमेरिका शरणार्थी संकट हो गया। इसी मुद्दे पर ट्रंप ने चुनाव जीता और अब वह शरणार्थियों को उनके देश वापस भेज रहे हैं। भारतीय लोग भी बड़ी संख्या में मैक्सिको और कनाडा की सीमाओं से अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश करते है। इसके लिए अधिकतर लोग मोटी रकम खर्च करते हैं।

भारत से अमेरिका का डंकी रूट

मानव तस्कर अक्सर नई दिल्ली और मुंबई से प्रवासियों को पर्यटक वीजा पर संयुक्त अरब अमीरात ले जाते हैं। फिर वे लैटिन अमेरिका में एक दर्जन से ज्यादा जगहों पर ठहरते हुए अमेरिका-मेक्सिको सीमा तक पहुंचते हैं। अमेरिका पहुंचने के बाद एजेंट यात्रियों को नकली कहानी बताते हैं। जब यात्री पकड़े जाते हैं तो उन्हें नकली कहानी सुनानी होती है। इससे उन्हें अमेरिका में शरण मिलने की संभावना बढ़ जाती है। अधिकतर कहानियां गरीबी और समलैंगिकता के कारण होने वाली परेशानियों से जुड़ी होती हैं, क्योंकि अमेरिका में ऐसे लोगों को ज्यादा सहानुभूति मिलती है। 

अलग-अलग रिपोर्ट के अनुसार डंकू रूट इक्वाडोर, बोलीविया या गुयाना जैसे लैटिन अमेरिकी देश में पहुंचने से शुरू होता है, जहां के लिए भारतीय नागरिक आसानी से पर्यटक वीजा बनवा सकते हैं। कुछ एजेंट दुबई से मैक्सिको के लिए सीधे वीजा की व्यवस्था भी करते हैं। हालांकि, मैक्सिको में सीधे उतरना अधिक जोखिम भरा माना जाता है, क्योंकि स्थानीय अधिकारी प्रवासियों को देखते ही गिरफ्तार कर सकते हैं। लैटिन अमेरिका से, अधिकांश एजेंट अपने ग्राहकों को कोलंबिया ले जाते हैं, जो पनामा की तुलना में अमेरिकी सीमा के करीब है। कोलंबिया से प्रवासी डेरियन गैप नामक खतरनाक जंगल से पनामा में प्रवेश करते हैं, जो कोलंबिया और पनामा को अलग करता है। इस जंगल में कोई सड़क या पुल नहीं है और यह जगुआर और एनाकोंडा जैसे जंगली जानवरों का घर है। प्रवासियों को इस क्षेत्र में आपराधिक गिरोहों द्वारा लूट और बलात्कार का भी सामना करना पड़ता है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो पनामा के जंगलों और पहाड़ों से होते हुए यात्रा में आठ से दस दिन लगते हैं। इसके बाद प्रवासी ग्वाटेमाला के साथ मैक्सिको की दक्षिणी सीमा पर पहुंचने से पहले कोस्टा रिका और निकारागुआ में प्रवेश करते हैं। फिर वे मैक्सिको में प्रवेश करते हैं और वहां से अमेरिका में प्रवेश करते हैं।

अमेरिका पहुंचने में लग जाते हैं दो साल

मौसम की स्थिति, राजनीतिक स्थिति, मानव तस्करी नेटवर्क जैसे कारणों के चलते भारत से अमेरिका पहुंचने में दो साल या उससे ज्यादा समय भी लग जाता है। अमेरिका और मैक्सिको के बीच सीमा क्षेत्रों के पास कई सुरंगें हैं। मैक्सिको में सक्रिय गिरोहों की ममद से अवैध अप्रवासी इन सुरंगों का इस्तेमाल अमेरिका के अंदर दाखिल होने के लिए करते हैं। 'यूएसए टुडे' की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी ही एक सुरंग को वीआईपी सुरंग माना जाता है। यह सुरंग अंधेरी और संकरी है और इसमें रैटलस्नेक, कीड़े और गर्मी जैसे जोखिम हैं। यह सुरंग मेक्सिको में स्यूदाद जुआरेज़ को टेक्सास में एल पासो से जोड़ती है। इस क्षेत्र में सक्रिय कार्टेल अमेरिका में प्रवेश की सुविधा के लिए 6,000 डॉलर तक चार्ज करते हैं। इसके अलावा, कार्टेल को भुगतान करने पर, प्रवासी को एक कोड दिया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि उन्हें मैक्सिको में अन्य कार्टेल और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा परेशान नहीं किया जाएगा और वे आसानी से अमेरिका में प्रवेश कर सकते हैं।

तस्करों की कमाई का मोटा जरिया

मेक्सिको-अमेरिका सीमा के आसपास के इलाकों में सक्रिय आपराधिक गिरोहों ने हाल के दिनों में ड्रग तस्करी की जगह मानव तस्करी को अपना धंधा बना लिया है, क्योंकि इसमें ज्यादा मुनाफा है। औसतन एक किलो कोकीन 1,500 डॉलर में मिल सकती है, लेकिन मानव तस्करी से प्रति व्यक्ति कम से कम 10,000-12,000 डॉलर की कमाई होती है। अमेरिकी सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा के अनुसार, 2023 में रिकॉर्ड 96,917 भारतीयों को अमेरिका में प्रवेश करने की कोशिश में पकड़ा गया या निष्कासित किया गया, जो 2021 में 30,662 से अधिक है। यह स्पष्ट नहीं है कि कितने और लोग सीमा पार करने में सफल रहे। 

अमेरिका लाखों अवैध भारतीय प्रवासी

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, भारत से बड़े पैमाने में लोग अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचते हैं। केंद्र का अनुमान है कि 2022 तक 700,000 से अधिक भारतीय पर्याप्त दस्तावेजों के बिना अमेरिका में रह रहे थे। अमेरिका इससे बड़ा समूह सिर्फ मैक्सिकन और होंडुरन का है। भारतीय कानून प्रवर्तन अधिकारियों के आंकड़ों का हवाला देते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि 2009 में 734, 2010 में 799, 2011 में 597, 2012 में 530 और 2013 में 550 निर्वासित किए गए। जयशंकर के बयान के अनुसार, 2014 में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई तो 591 निर्वासित किए गए, इसके बाद 2015 में 708 निर्वासित किए गए। 2016 में कुल 1,303 निर्वासित किए गए, 2017 में 1,024, 2018 में 1,180। सबसे अधिक निर्वासन 2019 में देखा गया था जब 2,042 अवैध भारतीय अप्रवासियों को देश वापस भेजा गया था। 2020 में निर्वासन संख्या 1,889 थी; 2021 में 805; 2022 में 862; 2023 में 670, पिछले साल 1,368 और इस साल अब तक 104 भारतीयों को वापस भारत भेजा गया है।

1.25 करोड़ तक है किराया

गुजरात पुलिस के अनुसार, यात्रियों ने अमेरिका की दक्षिणी सीमा तक पहुंचने में मदद करने के लिए एजेंटों को "40 लाख रुपये से लेकर 1.25 करोड़ रुपये तक का भुगतान किया था। तस्करों के नेटवर्क में कई एजेंट मिलकर काम करते हैं। गांव और जिला स्तर पर काम करने वाले एजेंट छोटे खिलाड़ी होते हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले एक सरगना नियंत्रित करते हैं। हाल ही में भारत लौटे एक व्यक्ति को ट्रैवल एजेंट ने धोखा दिया था। एजेंट ने उसे अमेरिका में कानूनी प्रवेश का वादा किया था, लेकिन अवैध तरीके से वहां भेजा। पीड़ित ने बताया "मैंने एजेंट से उचित वीजा के साथ भेजने के लिए कहा था, लेकिन उसने मुझे धोखा दिया। सौदा 30 लाख रुपये में तय हुआ था।" 

अमेरिका से लौटे भारतीय की कहानी

पीड़ित व्यक्ति की यात्रा ब्राजील से शुरू हुई, जहां छह महीने तक फंसे रहने के बाद उन्हें अवैध रूप से अमेरिका में सीमा पार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्हें 24 जनवरी को अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने गिरफ्तार किया और निर्वासित किए जाने से पहले 11 दिनों तक हिरासत में रखा। डंकी रूट का नया तरीका भी सामने आया है। तीन लोगों का गुजराती परिवार अमेरिका में पकड़ा गया था। जांच में सामने आया कि मानव तस्करों के एक अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट में कनाडा के कम से कम 260 कॉलेज शामिल हैं। इन कॉलेज ने कनाडा के रास्ते अमेरिका जाने के लिए "अवैध प्रवासियों" को छात्र वीजा जारी किए थे। यह डंकी रूट की तुलना में ज्यादा सुविधाजनक है। हालांकि, इसके लिए 50-60 लाख रुपये चुकाने होते हैं। 

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