ट्रंप के आने के बाद युद्धविराम होगा
यूक्रेन को भी अब यह साफ है कि 20 जनवरी के बाद जिसकी अमेरिका में सत्ता होगी, वो बिजनेस के हिसाब से सोचता है. साथ ही यूक्रेन को भी समझ आ गया है कि नई सत्ता में वे ज्यादा दिन तक युद्ध को झेल नहीं पाएंगे. वहीं, रूस को भी पता है कि अब उसके सामने यूक्रेन के विरोध के ज्यादा दिन नहीं बचे है. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों पर युद्ध विराम का दबाव होगा. यह अलग बात है कि यूक्रेन पर यह दबाव ज्यादा असर करेगा जबकि रूस अपने समय के और शर्तों के हिसाब से युद्ध विराम के लिए तैयार होगा.
दोनों देशोें में मची इलाकों पर कब्जे की होड़
अब जब युद्ध विराम होने की स्थिति होगी तब दोनों देश यह चाहेंगे कि युद्ध में कब्जे की स्थिति कुछ इस प्रकार रहे ताकि उनके पास टेबल पर शांति समझौते के लिए कुछ हो जिससे उनकी लेन-देन के लिए कुछ हो. खबरों की मानें तो यही कारण है कि दोनों देशों में एक दूसरे के इलाकों पर कब्जे की होड़ लग गई है. यूक्रेन ने जहां रूस के भीतरी इलाकों में मिसाइल हमले करना शुरू कर दिया है, वहीं, रूस की ओर से भी हमलों में तीव्र वृद्धि की है.
रूस से अपने इलाके वापस लेना चाहता है कीव
यूक्रेन ने पहले ही कीव से रूसी क्षेत्र के भीतर दूर तक मार करने अमेरिकी एटैकम्स मिसाइलें दागी हैं. यूक्रेन का प्रयास है कि वह उत्तर में रूस के कब्जे गए अपने क्षेत्र पर वापस कब्जा कर ले. बाइडेन ने जाते-जाते यूक्रेन को $300 मिलियन (£239 मिलियन) की नई सैन्य सहायता देने का ऐलान किया है. साथ ही इसमें बारूदी सुरंगें भी भेजने का वादा किया है.
अमेरिका ने क्यों लिया ऐसा फैसला
अमेरिका का कहना है कि रूस की ओर से लड़ने पहुंचे उत्तर कोरिया के सैनिकों की पुष्टि के बाद अमेरिकी राष्ट्र्पति जो बाइडेन ने ऐसा फैसला किया है.
अमेरिकी कदम के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की शर्तों में ढील देकर तनाव को और भी बढ़ा दिया है. मॉस्को का दावा है कि यह युद्ध के मैदान पर हार को "प्रभावी ढंग से समाप्त" करता है. साफ है ऐसा करके पुतिन को यह एहसास हो रहा है कि उनका पलड़ा यूक्रेन पर भारी है.
दूतावासों पर लगा ताला
दोनों देशों के बीच अचानक युद्ध में बढ़ते हमलों का असर दिखने भी लगा है. कई पश्चिमी देशों ने कीव में अपने दूतावास के दरवाजे बंद कर दिए हैं.
क्या है रूस की योजना
रूस की ओर से किए गए हमलों का संदेश यह भी है कि उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि अमेरिका में किसकी सरकार आती है. उसका इशारा है कि सब कुछ यूक्रेन और वहां के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की पर निर्भर करता है. कई जानकारों का भी यही मानना है कि रूस यूक्रेन को लेकर अपनी अलग ही योजना पर काम कर रहा है. रूस को अंतत: यूक्रेन को अपने अधीन करना चाहता है. जिस प्रकार से इतने दिन हो गए हैं उससे रूस अधीर होता जा रहा है. रूस जल्द से जल्द युद्ध समाप्त करना चाहता है.
ट्रंप के आने के बाद क्या होगा
ट्रंप के पदभार ग्रहण करने के बाद क्या हो सकता है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि माइक वाल्ट्ज जो कि ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने जा रहे हैं, का कहना है कि बाइडेन ने युद्ध को और आगे बढ़ाने का काम किया है और यह कहां तक जाएगा कोई नहीं जानता. डोनाल्ड ट्रंप जूनियर ने कहा कि बाइडेन उनके पिता के व्हाइट हाउस में पहुंचने से पहले तीसरा विश्व युद्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं.
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ट्रंप के आने से पहले अपनी अपनी शर्तें
कहा जा रहा है कि युद्ध समाप्त करने के लिए ट्रंप की किसी भी पहल से अपनी न्यूनतम मांगों के बारे में रूस ने जानकारी देना शुरू कर दिया है, और वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने भी अपनी स्थिति स्पष्ट करना शुरू कर दिया है. एक अमेरिकी टीवी से बातचीत में यूक्रेन की ओर से कहा गया है कि अगर वाशिंगटन ने सैन्य सहायता में कटौती की तो यूक्रेन का क्या होगा, उन्होंने स्पष्ट कहा: "अगर वे कटौती करेंगे, तो मुझे लगता है कि हम हार जाएंगे. बेशक, हम बने रहेंगे और लड़ेंगे. हमारे पास उत्पादन है, लेकिन यह प्रबल होने के लिए पर्याप्त नहीं है."
पुतिन इस बात पर जोर देते हैं कि यूक्रेन को किसी भी रिश्ते को चलाने के लिए तटस्थ रहना होगा, भले ही नाटो और यूरोपीय संघ दोनों में शामिल होना अब यूक्रेन के संविधान का हिस्सा है.
क्या करने को तैयार होंगे पुतिन
रॉयटर्स समाचार एजेंसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रूसी अधिकारियों के हवाले से बताया जा रहा है कि पुतिन अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र से हटने के लिए तैयार हो सकते हैं, लेकिन इससे बड़ा कुछ नहीं. वहीं यूक्रेन की ओर से इशारा किया जा रहा है कि वह अपने किसी भी इलाके को छोड़ने को तैयार नहीं होगा.