डीजल इंजन बनाते मुकेश शर्मा
वैशाली:- ‘लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते है मैंने उस हाल में जीने की कसम खाई है’, तमाम बाधाओं को पार कर सफलता पाने वाले कई मजबूर और लाचार लोगों की कहानी आपने रील और रियल लाइफ में जरूर देखा होगा. लेकिन जो कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं, वैसी कोई कहानी रील लाइफ में भी आपने नही देखी होगी. यह कहानी वैशाली के महनार स्थित मुरौवतपुर निवासी सुबोध शर्मा की है, जो जन्म से ही अंधे हैं. भगवान ने भले ही दुनिया को देखने के लिए आंख नहीं दिया, लेकिन हुनर ऐसा दिया, जिसे देखकर लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं.
दरअसल सुबोध कमाल मैकेनिक हैं और किसी भी डीजल इंजन की कोई भी खराबी मिनटों में ठीक कर देना इनके बांए हाथ का खेल है. इतना ही नहीं, सुबोध इंजन की आवाज सुनकर ही उसकी खराबी पकड़ लेते हैं और चंद मिनटों में ही उस खराबी को दूर कर देते हैं. खास बात यह है कि सुबोध जन्म से अंधे हैं और पत्नी दोनों पैर से दिव्यांग है, फिर भी शान से दोनों एक-दूसरे का सहारा बनकर जिंदगी जी रहे हैं और लोगों को भी यह सिख दे रहे हैं कि दरिया हो या पहाड़ हो, सबसे टकराना चाहिए, जब तक सांस ना टूटे, जिए जाना चाहिए. सुबोध और उनकी दिव्यांग पत्नी एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ने की प्रेरणा दे रही हैं.
पिता डीजल इंजन का करते थे काम
बता दें कि जिले के महनार प्रखंड के मुरौवतपुर वार्ड 13 निवासी स्व. जोधन शर्मा व मां अनुपा देवी के दो पुत्र जन्म से ही अंधे हैं. तीन भाइयों में पप्पू शर्मा और सुबोध शर्मा बचपन से अंधे हैं, जिनके पिता डीजल इंजन के मरम्मत का कार्य कर अपना जीवन यापन चलाते थे. जैसे-जैसे सुबोध बड़े हुए, वह पिता के साथ मशीन बनाने में सहयोग करने लगे. लेकिन पिता की मौत होने पर सुबोध पूरी तरह से एक कुशल डीजल इंजन मैकैनिक बन गये. हालांकि बड़े होने पर माता-पिता को सुबोध की शादी की चिंता सताने लगी थी. लेकिन कहावत है कि ‘भगवान ऊपर से जोड़ी बनाकर भेजते हैं’, लिहाजा सुबोध के लिए ईश्वर ने जोड़ी बनाकर भेजा और 2010 में सुबोध की शादी दोनों पैर से दिव्यांग दीपमाला से हो गई. फिर दिव्यांग पत्नी जीवन की सारथी बन गईं और दोनो के जीवन की गाड़ी सरपट दौड़ने लगी.
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बिना देखे, आवाज से बता देते हैं खराबी
सुबोध शर्मा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. दोनों आंख से दिखाई नहीं देने के बावजूद भी सुबोध डीजल इंजन के आवाज से उसकी खराबी पकड़ लेते हैं और बगैर किसी सहारे के उस खराब इंजन को दूरुस्त भी कर देते हैं. सुबोध की पत्नी दिव्यांग दीपमाला बताती हैं कि ऊपर वाले ने पति के रूप में मुझे एक अनमोल रत्न दिया है. यह रत्न अच्छे-अच्छों को करोड़ों रुपए दहेज देने के बाद भी नहीं मिलता है. आंख से अंधे मेरे पति जरूर हैं, लेकिन उनके अंदर जो हुनर छुपा हुआ है वो और लोगों में नहीं है.
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FIRST PUBLISHED :
October 8, 2024, 10:50 IST