न बैकअप प्लान, ना दूसरी जॉब, अचानक छोड़ दी नौकरी, वजह जानकर कहेंगे- सही किया!

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Last Updated:January 11, 2025, 15:38 IST

Viral News, LinkedIn Post: इन दिनों हर जगह काम के घंटों और ऑफिस के कल्चर को लेकर बहस छिड़ी हुई है. कभी नारायण मूर्ति तो कभी एसएन सुब्रह्मण्यन 70-90 घंटे साप्ताहिक काम की सलाह देकर बहस को नया रूप दे देते हैं. हाल ही में...और पढ़ें

नई दिल्ली (Viral News, LinkedIn Post). पहले लिंक्डइन सिर्फ नौकरी ढूंढने और प्रोफेशनल कनेक्शन बढ़ाने का जरिया हुआ करता था. लेकिन अब लोग अपनी कंपनी के रिव्यू से लेकर प्रोफेशनल लाइफ का सारा फ्रस्ट्रेशन तक वहीं निकालने लगे हैं. इंफोसिस के पुणे ऑफिस में कार्यरत सीनियर सिस्टम इंजीनियर भूपेंद्र विश्वकर्मा ने अचानक ही अच्छी-भली नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने न तो नई नौकरी ढूंढने का इंतजार किया और न ही किसी बैकअप प्लान की चिंता की.

भूपेंद्र विश्वकर्मा के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं रहा होगा. आज के दौर में नौकरी के बिना सर्वाइव कर पाना बहुत मुश्किल है. ज्यादातर युवा कहीं से जॉब ऑफर मिल जाने के बाद ही नौकरी छोड़ते हैं. लेकिन भूपेंद्र विश्वकर्मा ने इतना इंतजार भी नहीं किया. उन्होंने लिंक्डइन पर एक पोस्ट शेयर कर नारायण मूर्ति की कंपनी इंफोसिस में काम करने की चुनौतियों के बारे में लिखा है. यह पोस्ट जबरदस्त वायरल हो रहा है (Viral Post). अभी तक 6 हजार से ज्यादा लोग इसे लाइक कर चुके हैं.

इन 6 कारणों से छोड़ी नौकरी

1- 3 साल में नहीं हुई ग्रोथ: भूपेंद्र विश्वकर्मा ने इंफोसिस पुणे में सिस्टम इंजीनियर के तौर पर जॉइन किया था. 3 साल की मेहनत और अच्छी परफॉर्मेंस के बाद उन्हें सीनियर सिस्टम इंजीनियर तो बना दिया गया लेकिन किसी तरह का सैलरी हाइक नहीं मिला.

2- छोटी टीम, ज्यादा वर्कलोड: उनकी टीम में पहले 50 लोग थे, फिर 30 रह गए. लेकिन इसके बावजूद नए लोगों की हायरिंग नहीं हुई. जिन लोगों ने नौकरी छोड़ी, उनका काम बचे हुए एंप्लॉइज को सौंप दिया गया. इससे वर्क प्रेशर बढ़ता गया और इसके बदले में उन्हें कोई सपोर्ट भी नहीं दिया गया.

3- खत्म हो गई करियर ग्रोथ: भूपेंद्र को अपनी टीम में कोई ग्रोथ नजर नहीं आ रही थी. उनके मैनेजर भी मानते थे कि उन्हें लॉस वाले अकाउंट का असाइनमेंट दे दिया गया है. इससे करियर ग्रोथ, नए अवसरों और सैलरी हाइक पर काफी असर पड़ा.

4- टॉक्सिक वर्क कल्चर: क्लाइंट्स की अवास्तविक अपेक्षाओं की वजह से उन पर काम का दबाव बढ़ता जा रहा था. छोटे-छोटे इश्यूज को भी वहां बढ़ा दिया जाता है. संघर्ष की ऐसी स्थिति में किसी भी तरह की पर्सनल ग्रोथ नहीं मिल पा रही थी.

5- एफर्ट की नहीं थी वैल्यू: भूपेंद्र के सीनियर्स और सहकर्मी उनके काम की तारीफ करते थे लेकिन उससे उन्हें प्रमोशन, सैलरी हाइक या करियर में ग्रोथ नहीं मिल पा रही थी. भूपेंद्र विश्वकर्मा को महसूस होने लगा था कि किसी रिवॉर्ड के बजाय उनका लगातार शोषण किया जा रहा था.

6- हिंदी को माना रुकावट: भूपेंद्र विश्वकर्मा ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में दावा किया कि नौकरी के ऑनसाइट अवसर मेरिट पर आधारित नहीं थे. हिंदी भाषी कर्मचारियों को वहां साइडलाइन कर दिया जाता था. इसमें परफॉर्मेंस से ज्यादा भाषाई ज्ञान पर फोकस था (तेलुगू, तमिल, मलयालम).

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