Last Updated:February 04, 2025, 16:18 IST
Tigress Heart Touching Story: एक बाघिन की कहानी वाकई दिल दहलाने वाली है. इस कहानी में सिर्फ क्रूर बल नहीं बल्कि मजबूत इच्छाशक्ति भी है. उसने कई कठिनाईयों का सामना किया. मगर फिर भी उसने नई चुनौतियों को स्वीकार क...और पढ़ें
हाइलाइट्स
- बाघिन बेलडंडा ने 13 शावकों को जन्म दिया.
- बेलडंडा ने कठिन संघर्षों का सामना किया.
लखीमपुर खीरी: दुधवा में एक बाघिन की कहानी वाकई अद्भुत है. उसने जिंदा रहने की कहानी नए सिरे से लिखी है. इस कहानी में सिर्फ क्रूर बल नहीं बल्कि मजबूत इच्छाशक्ति भी है. उसने कई कठिनाईयों का सामना किया, जैसे अपने बच्चों का मारा जाना. मगर फिर भी उसने नई चुनौतियों को स्वीकार किया और जिंदगी में आगे बढ़ी. बता दें, ये कहानी लखीमपुर खीरी के किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य की रानी बेलडंडा की है.
कम से कम 13 शावक को दिया जन्म
बेलडंडा ने अब तक कम से कम 13 शावकों को जन्म दिया है. वह भारत के प्रसिद्ध रणथंभौर की बाघिन मछली से आगे निकल गई है. इस मछली ने 1999 और 2006 के बीच 11 शावकों को जन्म दिया था. एक समय में उसे ‘भारत की सबसे ज्यादा फोटो में आने वाली बड़ी बिल्ली’ के रूप में जाना गया था.
दिल दहलाने वाला संघर्ष
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, बेलडंडा का बहुत खास होना सिर्फ उसकी संतान पैदा करने की वजह से नहीं, बल्कि उसका संघर्ष है. उसने अपने इलाके में जगह बनाई. हालांकि, जंगल में शक्ति कभी स्थिर नहीं रहती और उसे नए मर्दों से लगातार खतरा रहता है, जैसे कि थंडर मेल का हमला.. लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी. वह पर्यटकों के बीच भी एक आकर्षण बन गई है. दिलचस्प बात यह है कि वह पर्यटकों के बीच बहुत सहज रहती है. यह बात बहुत कम जानवरों में देखने को मिलती है, क्योंकि ज्यादातर माएं अपने बच्चों के साथ आक्रामक होती हैं.
विशाल जंगल में खोए बच्चे
मछली की विरासत लंबी उम्र से परिभाषित होती है, वहीं बेलडंडा की विरासत में लंबे संघर्ष की कहानी है. उसने पहली बार 2019 में दुनिया का ध्यान खींचा, जब उसकी तस्वीर पांच शावकों के साथ खींची गई. वन्यजीव विशेषज्ञ और पार्क के अधिकारी दंग रह गए, लेकिन प्रकृति के पास कुछ और ही योजनाएं थीं. एक-एक करके ये शावक गायब होते गए और कुछ को मृत मान लिया गया, वहीं कुछ विशाल जंगल में खो गए.
फिर उम्मीद जगी तो हो गया ये…
एक साल बाद बेलडंडा ने फिर से 4 शावकों को जन्म दिया. इसके साथ नई उम्मीद जगी कि प्रकृति ने बेलडंडा को दूसरा मौका दिया है. मगर उसे क्या पता था कि एक बार फिर मुसीबत आ जाएगी. 2020 में, एक कैमरा ट्रैप में कैद एक वीडियो ने दहला कर रख दिया. एक थंडर मेल नामक नर बाघ ने इसके शावकों पर हमला कर दिया था. इस हमले में 2 शावक मारे गए और बेलडंडा घंटों तक अपने मृत शावकों के पास बैठी रही और रोती रही. वह उन्हें छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी. बेलडंडा के अपने मृत शावकों के पास लेटी हुई तस्वीरों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया था. यह तस्वीर दिल दहलाने वाली थी, जिसने उसे जंगली जानवरों के क्रूर कानूनों का प्रतीक बना दिया. इस घटना के बाद किशनपुर में पर्यटन को रोक दिया गया और शेष शावकों की सुरक्षा के लिए पहुंच प्रतिबंधित कर दी गई. इस घटना में 2 नर शावक तो जीवित नहीं रहे, लेकिन 2 मादा वयस्क हो गईं.
महज जिंदा इतने बच्चे
एक बार फिर साल 2023-24 में, बेलडंडा ने चार शावकों को जन्म दिया. इनमें से 3 वयस्क होने तक जीवित रहे. ये एक ऐसी उपलब्धि है, जो दुनिया में बहुत कम बाघिनें हासिल कर पाती हैं. वर्तमान में उसके सिर्फ पांच बच्चे जिंदा हैं. 2020 में पैदा हुए 2 मादा शावक और 2024 में पैदा हुए 3 शावक. यह जीवित रहने की दर उल्लेखनीय है, क्योंकि जंगल में 4 से 5 शावकों में से केवल 2-3 शावक ही वयस्क होने तक जीवित रहते हैं.
एक मां से बढ़कर कहीं अधिक
बेलडंडा सिर्फ एक मां से कहीं बढ़कर है. वह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. हर साल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक दुधवा आते हैं, सिर्फ इस उम्मीद में कि उन्हें उस बाघिन की एक झलक मिल जाए, जिसने ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना किया है, जैसा किसी ने नहीं किया. गाइड और वन्यजीव फोटोग्राफरों के बीच उसकी प्रतिष्ठा बेजोड़ है. इंसानों की मौजूदगी से बेपरवाह, एक ऐसा आत्मविश्वास दिखाती है, जो कुछ जंगली बाघों में होता है.
Location :
Lakhimpur,Kheri,Uttar Pradesh
First Published :
February 04, 2025, 16:18 IST
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