Last Updated:January 20, 2025, 17:13 IST
Woman decease penalty: बॉयफ्रेंड को जहर देकर मारने के लिए 24 साल की ग्रीष्मा को मौत की सजा सुनाई गई है. इस घटना ने एक बार फिर, महिलाओं को फांसी दिए जाने के मुद्दे को छेड़ दिया है.
केरल के तिरुवनंतपुरम जिले की नेय्याट्टिनकारा अदालत ने हाल ही में 24 साल की महिला, ग्रीष्मा को अपने प्रेमी शेरोन राज की हत्या का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है. यह मामला भारत में महिलाओं को दी गई फांसी की सजाओं के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण घटना है. वहीं, इस घटना ने एक बार फिर इस विषय पर ध्यान खींचा है कि अब तक, भारत में महिला अपराधियों को कितनी बार मृत्युदंड दिया गया है?
आजाद भारत की पहली महिला जिसे हुई फांसी
भारत में आजादी के बाद से केवल दो महिलाएँ फांसी की सजा प्राप्त कर चुकी हैं. इनमें से पहली महिला शबनम है, जिसे 2008 में अपने परिवार के सात सदस्यों की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था. शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर इस हत्या को अंजाम दिया था, और इसे एक अत्यंत नृशंस अपराध माना गया. सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा को बरकरार रखा और राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका को भी खारिज कर दिया था.
साल 1955 में रतनबाई को फांसी
इसके अलावा, 1955 में रतनबाई जैन को भी फांसी दी गई थी, लेकिन उसके मामले को आमतौर पर कम जाना जाता है. रतनबाई को यह सजा तीन लड़कियों की हत्या के आरोप में दी गई थी. पति के साथ अवैध संबंधों के शक में रतनबाई ने तीनों लड़कियों की जान ले ली थी. उसे, जनवरी 1955 में उसे फांसी की सजा दी गई थी. हालांकि, ग्रीष्मा को दी गई मौत की सजा एक नई घटना है, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में महिलाओं को फांसी की सजा देने के मामले बहुत कम हैं.
कब दी जाती है फांसी?
भारतीय कानून व्यवस्था में मृत्युदंड ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस’ मामलों में ही दिया जाता है. महिला अपराधियों के मामले में यह और भी दुर्लभ है. आंकड़ों के अनुसार, स्वतंत्र भारत में अब तक 50 से भी कम महिलाओं को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है, जिनमें से केवल कुछ को ही वास्तव में फांसी दी गई.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
January 20, 2025, 17:13 IST