मल्कीपुर अखिलेश यादव को तो 'अपनों' ने लूटा, कैसे ताकत बनी कमजोरी?

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Agency:Local18

Last Updated:February 08, 2025, 13:38 IST

मिल्कीपुर में वोटों की गिनती के नतीजे देख कर कहा जा सकता है कि उसके अपने यादव वोट बैंक ने भी पार्टी का साथ नहीं दिया. ऊपर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जबरदस्त रणनीति ने अयोध्या में अवधेश के बाद भी एसपी का ग...और पढ़ें

मल्कीपुर अखिलेश यादव को तो 'अपनों' ने लूटा, कैसे ताकत बनी कमजोरी?

समाजवादी पार्टी आखिर क्यों नहीं बचा पाई मिल्कीपुर का गढ़?

हाइलाइट्स

  • कैसे ढह गया समाजवादी पार्टी का गढ़ मिल्कीपुर
  • 55 हजार यादव वोटर फिर भी जीती बीजेपी
  • मित्रसेन यादव परिवार की अनदेखी का असर ?

अवधेश प्रसाद की अयोध्या में जीत की गूंज दुनिया भर में सुनी गई थी.विपक्षी पार्टियां अवधेश की जीत को पूरे भगवा ब्रिगेड की अयोध्या में हार के तौर पर पेश कर रहे थे. फैजाबाद या अयोध्या से सांसद बनने से पहले अवधेश प्रसाद मिल्कीपुर सीट से विधायक थे. उनके सांसद बन जाने के बाद मिल्कूपुर सीट खाली हुई और यहां उपचुनाव हो रहा था. उपचुनाव में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार… की हाराने में जितना योगदान योगी आदित्यनाथ की चाक चौबंद किलेबंदी की है, उतना ही यादव वोटरों का भी है. इस बार यादव मतदाताओं ने अखिलेश यादव को बता दिया कि वे समाजवादी पार्टी की जागीर नहीं हैं.

मिल्कीपुर में यादव मतदाताओं की संख्या 50 से 55 हजार मानी जाती है. इस वजह से इसे समाजवादी पार्टी अपने लिए महफूज सीट मानती रही है. प्रदेश में अपने यादव वोटरों का एकमात्र रहनुमा मानने वाले अखिलेश यादव को अयोध्या फतह के बाद शायद ये भूल गया था कि पूरे फैजाबाद इलाके में मित्रसेन यादव का साठ के दशक से कितना दबदबा रहा है. मिल्कीपुर सीट के सुरक्षित घोषित होने से पहले तक बाबूजी के नाम से मशहूर रहे मित्रसेन 1989 तक वहां के विधायक रहे. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने की वजह से उन्हें अपनी सीट बदलनी पड़ी और वे बीकापुर से लड़े और जीते भी. मित्रसेन यादव 1998 में सांसद बन गए. 2000 में भी उन्होंने फैजाबाद सीट जीती. उनके राजनीतिक रसूख को इससे भी समझा जा सकता है कि रामलहर के बाद भी उन्होंने विनय कटियार को हरा दिया था.

बीजेपी को अयोध्या की हार की कसक मिल्कीपुर सीट से निकालनी थी. इसके लिए सीएम योगी आदित्य नाथ ने तकरीबन अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ मिल्कीपुर की किलेबंदी की. ऊपर से मित्रसेन यादव और उनके बेटे की अखिलेश यादव की अनदेखी ने इलाके के यादव मतदाताओं को समाजवादी पार्टी से दूर कर दिया. इस इलाके के यादव समाजवादी पार्टी बनने के पहले से ही मित्रसेन यादव परिवार से जुड़े हुए थे. मित्रसेन यादव के बाद उनकी विरासत उनके बेटे अरविंदसेन यादव और आनंदसेन यादव के पास रही. मित्रसेन की बहू प्रियंकासेन यादव भी जिलापंचयत सदस्य रह चुकी हैं. अखिलेश यादव ने जिस तरह अवधेश प्रसाद को बढ़ावा दिया उसे लेकर मित्रसेन का परिवार नाखुश बताया जाता है. मित्रसेन परिवार से इलाके के ज्यादातर यादव सीधे जुड़े हुए हैं.

फैजाबाद के वरिष्ठ पत्रकार वीएन दास बताते हैं -” मित्रसेन यादव की वजह से ही य़े सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा. बीजेपी तो यहां से पहले सिर्फ दो बार जीती है.” उन्होंने ये भी याद दिलाया कि मित्रसेन यादव जब कम्युनिस्ट पार्टी में थे तब भी जीता करते रहे. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि समाजवादी पार्टी से रणनितिक भूले होती रही, जबकि बीजेपी अपनी रणनीति को और धारदार बनाती रही.

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अयोध्या में हार के बाद से ही बीजेपी और खास तौर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था. उन्होंने कई मंत्रियों को क्षेत्र में लगा दिया. साथ ही इलाके में तमाम विकास कार्य शुरु करा दिए थे.ऊपर से लोगों को लग रहा था कि अगर पार्टी प्रत्याशी हार गया तो विकास के काम भी प्रभावित हो सकते हैं. दास बताते हैं कि राम मंदिर के बाद भी अयोध्या से बीजेपी की हार से आस्थावान लोगों को धक्का लगा था. उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने फैजाबाद वाले नारे की तर्ज पर नारा दिया -‘मथुरा ना काशी, मिल्कीपुर में अजीत पासी.’ लेकिन इस नारे ने भी हिंदू वोटरों को एसपी के विरुद्ध लामबंद किया. ये भी बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान की जीत की एक बड़ी वजह रही.

Location :

Lucknow,Uttar Pradesh

First Published :

February 08, 2025, 13:38 IST

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