मोनालिसा के समुदाय के बारे में जानते हैं आप? पढ़ेंगे तो आंखें हो जाएगी नम

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Agency:Local18

Last Updated:February 12, 2025, 16:48 IST

महाकुंभ की वायरल गर्ल मोनालिसा जिस समुदाय से आती है, उसकी स्थिति बहुत ही खराब रही है. एक समय तक तो इस समुदाय के लोग बिल्कुल ही पढ़े लिखे नहीं होते थे. जीविका के लिए इन्हें वो सब कुछ करना होता था जिसे किसी भी तर...और पढ़ें

मोनालिसा के समुदाय के बारे में जानते हैं आप? पढ़ेंगे तो आंखें हो जाएगी नम

वायरल गर्ल मोनालिसा बेहद वंचित बंजारा समुदाय से है.

हाइलाइट्स

  • घूमंतू जनजाति की मार्मिक कहानी है 'उचक्का'
  • लक्ष्मण गायकवाड़ ने आत्मकथा शैली में लिखी है कहानी
  • गुर्बत में जीते बंजारों को शोषण का भी शिकार होना पड़ता रहा

इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें फिल्मकार सनोज मिश्रा मोनालिसा को कखगघ… पढ़ाते नजर आ रहे हैं. मोनालिसा को लिखना और पढ़ना बिल्कुल नहीं आता. वही मोनालिसा जिसे महाकुंभ-मंथन के दौरान सोशल मीडिया ने ‘रतन’ की तरह निकाला. अपनी गहरी नीली आंखों की वजह से मोनालिसा मेले में मालाएं भी नहीं बेंच पा रही थी, लेकिन फिल्मकार सनोज मिश्रा ने उसे अपनी फिल्म में रोल देने के लिए चुन लिया. अब वे घुमंतू जनजाति की इस युवती को पढ़ना लिखना सिखा रहे हैं. हर जगह वक्त की तरह मौजूद सोशल मीडिया ने इसे भी वायरल कर दिया. खैर, विषय ये नहीं है. विषय है मोनालिसा का अपना समुदाय. उसका जन्म पारधी नाम के जनजाति में हुआ है. ये बंजारों की ही तरह घुमंतू होते हैं.

लक्ष्मण गायकवाड़ का ‘उचक्का’
ऐसे ही एक समुदाय के एक बडे़ नामचीन लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हुए हैं – लक्ष्मण गायकवाड़. उन्होंने उचाल्या या उकल्या नाम का एक उपन्यास लिखा है. मराठी में लिखे गए इस उपन्यास का तमाम भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है. हिंदी में ये पुस्तक उचक्का नाम से है. इस किताब को हर भाषा में हाथों हाथ लिया गया. इस किताब के लिए उन्हें साहित्य एकेडेमी सम्मान भी दिया गया. लक्ष्मण ने किताब में लिखा है कि वे अपने पूरे समुदाय के पहले व्यक्ति हैं जिसने स्कूल जा कर पढ़ाई की. उनके पहले किसी ने स्कूल की देहरी में कदम नहीं रखा था. आत्मकथा जैसे इस उपन्यास में उन्होंने लिखा है कि जब उनको स्कूल में दाखिल करा दिया गया तो उसी समय हैजा जैसी किसी बीमारी का प्रकोप हुआ. इस पर पूरा समाज खड़ा हो कर कहने लगा -“बेटे को स्कूल भेज दिया इसी से ये आपदा आई है.”

पढ़ाई की जगह ठगी चोरी क गुर सीखने होते थे
अपने समुदाय का जिक्र करते हुए लक्ष्मण ने बिना किसी लाग लपेट के लिखा है कि वे जिस समुदाय में पैदा हुए थे, वहां खाने के लिए कुछ भी करना पड़ता था. चोरी और ठगी ही उनका ऐसा पेशा था जो स्थाई तौर पर वे लोग किया करते. बाकी रोजी के लिए अगर कुछ काम मिल गया तो वो भी कर लेते थे. उन्होंने लिखा है कि बच्चों की शिक्षा यही थी कि उनकी पिटाई की जाती थी. यही पिटाई उनके काम आती थी. पुलिस पकड़ कर पीटती रह जाए लेकिन मुंह न खुले बस यही तालीम दी जाती थी. इसके लिए जब बच्चों की मसें भीगने लगती तो आने जाने वाला कोई भी रिश्तेदार आते ही घर के बच्चों को खूब पीटता. या फिर किसी ऐसा उस्ताद टाइप के रिश्तेदार को बच्चे को सौंप दिया जाता जो उसे पीट पीट कर पिटाई के लिए रजिस्टेंट बना दे.

बचपन से मारपीट कर पुलिस पिटाई से इम्यून बनाते रहे
ठगी के लिए तरह तरह से समुदाय के लोग अपने बच्चों को तरह तरह के गुर सीखाते. बाजी लगा कर लोगों को ठगना इस समुदाय का काम था. फिर भी समुदाय की गरीबी और दुर्दशा खत्म नहीं हुई. सिस्टम इन्हें परेशान ही करता रहता. चोरी कहीं भी पुलिस वाले इनके डेरों में आ धमकते. युवकों को पीटने लगते. उन्हें लगता था कि चोरी में इनका हाथ होगा. ये उत्पीड़न पुलिस को पक्की तसल्ली हो जाने तक कई राउंड का भी हो सकता था.

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बहुत परेशान हो जाने पर कुनबा वो इलाका छोड़ कर डेरा डंडा समेट कहीं और के लिए निकल पड़ता था. इसी तरह से ये जनजाति आंध्र की सीमा से महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश तक फैलता गया. कहीं भी इनका एक जगह ठौर-ठिकाना नहीं कायम हो पाता. अंग्रेजों ने इस पूरी की पूरी जाति को ही जरायमपेशा जाति घोषित कर दिया. जरायमपेशा मतलब अपराध करने वाले. दस्तावेज अभी भी बदले नहीं है. लिहाजा कई राज्यों के पुलिस दस्तावेजों में ये अभी भी उसी तरह दर्ज है. फिर भी लक्ष्मण ने हार नहीं मानी. वे आगे बढ़ते रहे. उन्होंने समाज के उत्थान के लिए बहुत से कदम उठाए. अब उन्हें एक बड़े लेखक के तौर पर जाना पहचाना जाता है.

Location :

Allahabad,Uttar Pradesh

First Published :

February 12, 2025, 16:48 IST

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