16 साल की लड़की सहमति से संबंध बनाए तो...डॉक्टर ने जज साहब-MTP की मंजूरी दीजिए

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Last Updated:February 04, 2025, 11:24 IST

HC Court News: महाराष्ट्र हाईकोर्ट में एक डॉक्टर ने याचिका दाखिल करके मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत गर्भपात के मामलों में नाबालिगों की गोपनियता की रक्षा की जाए. उन्होंने कहा कि 16 साल की ...और पढ़ें

16 साल की लड़की सहमति से संबंध बनाए तो...डॉक्टर ने जज साहब-MTP की मंजूरी दीजिए

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी को लेकर डॉक्टर की हाईकोर्ट में याचिका

हाइलाइट्स

  • डॉक्टर ने नाबालिगों की गोपनीयता की रक्षा की मांग की.
  • हाईकोर्ट ने गर्भपात के मामलों में दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया.
  • 16 साल की उम्र में सहमति से संबंध बनाने पर क्रिमिनल प्रोसिजर नहीं हो.

मुंबई: सहमति से संबंधों में शामिल नाबालिगों की गोपनीयता की रक्षा करते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत सुरक्षित गर्भपात सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए मुंबई के गायनेकोलॉजिस्ट डॉ.निखिल दातार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग को सिफारिशें प्रस्तुत की हैं, जिन्हें हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट में पेश किया गया.

याचिकाकर्ता जो 25 वर्षों से अधिक समय से प्रैक्टिस कर रहे हैं डॉ. दातार ने अपने पत्र में कहा कि 16 साल की उम्र के बाद लड़कियां यौन संबंध के लिए सहमति देने या अस्वीकार करने के लिए ‘पर्याप्त रूप से परिपक्व’ होती हैं. उन्होंने कहा कि जब एक किशोरी स्पष्ट रूप से कहती है कि उसने सहमति से यौन संबंध बनाए हैं. एक ऐसे साथी के साथ जो लगभग समान आयु का है, तो लड़की को MTP प्रदान किया जाना चाहिए. बिना आपराधिक प्रक्रिया को सक्रिय किए.

क्या थी याचिका?
पिछले साल, डॉ. दातार और डॉ. राजेंद्र चौहान ने 16 वर्षीय लड़की की पहचान पुलिस को बताए बिना 14 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति मांगने के लिए एक याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट ने गर्भपात की अनुमति दी लेकिन दो कानूनों के बीच के संघर्ष की जांच करने का भी निर्णय लिया. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, जो ऐसे मामलों में अनिवार्य रिपोर्टिंग की आवश्यकता होती है और MTP अधिनियम, जो महिलाओं की गोपनीयता की रक्षा करता है.

कोर्ट ने दिया था क्या निर्देश?
हाईकोर्ट ने विभाग को ऐसे मामलों में डॉक्टरों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया. हालांकि, विभाग ने केवल 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसने डॉक्टरों को इन मामलों में नाबालिग की पहचान गोपनीय रखने की अनुमति दी और बताया कि दिसंबर 2024 की सरकारी प्रस्तावना में कहा गया कि MTP और यौन उत्पीड़न के मामलों को संभालने की जिम्मेदारी अस्पताल प्रमुखों के पास रहेगी. स्पष्ट मानदंड स्थापित करने में विफल रहने पर हाईकोर्ट ने 2 जनवरी को याचिकाकर्ताओं को विभाग को सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिए कहा.

क्या है कूल-ऑफ पीरियड?
ये सिफारिशें चार भागों में विभाजित हैं: कूल-ऑफ अवधि, तीसरे पक्ष का प्रमाणीकरण, पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी (RMP) का कर्तव्य, और RMP द्वारा ऐसे मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिंग बिना पुलिस को व्यक्तिगत विवरण बताए. याचिकाकर्ताओं ने सुझाव दिया कि ‘कूल-ऑफ पीरियड’ केवल 15 से 18 वर्ष की आयु के बीच के लोगों के लिए सीमित होनी चाहिए, और यह तब लागू नहीं होगी जब किशोरी स्वेच्छा से और जानबूझकर किसी शिक्षक या परिवार के सदस्य जैसे शक्ति की स्थिति में व्यक्ति के साथ यौन संबंध का खुलासा करती है.

पत्र में कहा गया कि विशेष रूप से यह तब लागू होना चाहिए जब माता-पिता या अभिभावक भी किसी कानूनी कार्यवाही को दर्ज नहीं करने के लिए सहमत हों. इसमें आगे सुझाव दिया गया कि RMP द्वारा अभिभावक से लिखित सहमति प्राप्त की जानी चाहिए ताकि नाबालिग की पहचान गोपनीय रखी जा सके और कानूनी कार्रवाई के लिए आवश्यक होने पर ही फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र किए जाएं.

कौन अभिभावक माना जा सकता है?
28 जनवरी को लिखे गए पत्र में सरकार को ऐसी सहमति के लिए एक मानक टेम्पलेट प्रदान करने और यह स्पष्ट करने की सिफारिश की गई कि कौन अभिभावक माना जा सकता है और क्या अभिभावक अनुपलब्ध होने पर नाबालिग सहमति दे सकता है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सहमति बिना किसी अनुचित दबाव के दी गई है.

इसमें प्रस्तावित किया गया कि अभिभावक एक नोटरीकृत हलफनामा जमा करें या सिविल सर्जन जैसे चिकित्सा अधिकारी के साथ सहमति की पुन: पुष्टि करें. वैकल्पिक रूप से, पुलिस तीसरे पक्ष के सत्यापन को संभाल सकती है. डॉ. दातार के सुझावों पर हाईकोर्ट ने विभाग को 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा है.

Location :

Mumbai,Maharashtra

First Published :

February 04, 2025, 11:24 IST

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