महाकुंभ मेले का सनातन धर्म में काफी अधिक महत्व है। यहां धार्मिक महापर्व प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हुआ, जो 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ में अमृत स्नान का खासा महत्व रहा है। इसी सिलसिले में पहला अमृत स्नान हो चुका है, दूसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को होगा और तीसरा अमृत स्नान 3 फरवरी को होना है। अमृत स्नान का पहला हक नागा साधुओं को दिया जाता है। नागा साधु भोले शंकर के उपासक माने जाते हैं।
महाकुंभ मेले के दौरान स्नान के साथ ही देवी-देवताओं की पूजा भी की जाती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि किन-किन देवी देवताओं की पूजा होती है...
किस देवी देवता की होती है पूजा?
महाकुंभ का आरंभ समुद्र मंथन के बाद माना जाता है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र से चौदह रत्न निकाले थे, इनमें से एक अमृत का कलश था। जिसे लेकर देवों और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया था। माना जाता है कि युद्ध के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं थी, जिस कारण महाकुंभ का आरंभ हुआ। हालांकि समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल विष निकला था, जिसके बाद चारों ओर हाहाकार मच गया था।
शीतलता प्रदान करने के लिए किया जलाभिषेक
इसके बाद महादेव ने आगे आकर हलाहल विषपान किया और विष को अपने कंठ में रोक दिया। इसी कारण महादेव का नाम नीलकंठ पड़ा। फिर विष की गर्मी से शीतलता प्रदान करने के लिए महादेव को देवताओं और ऋषि-मुनियों ने मिलकर घड़े से भर-भरकर जल, दूध आदि से अभिषेक किया। तभी से महादेव की जलाभिषेक पूजा शुरू हुई। यही कारण है कि महाकुंभ में महादेव की पूजा होती है।
वहीं, अमृत कलश को दैत्यों से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने मोहनी रूप धर देवताओं में बांट दिया था। जिस कारण भगवान विष्णु की भी पूजा होती। विष्णु भगवान के साथ मां लक्ष्मी की पूजा का भी विधान है। इसके साथ ही महाकुंभ में मां गंगा की भी पूजा होती है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)