कैसे एक चीनी सैनिक वांग ची बन गया बालाघाट का राजबहादूर? जानिए पूरी कहानी

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वांग ची, पूर्व चीनी सैनिक

Balaghat News: 1970 में तिरोड़ी पहुंचे चीनी सैनिक वांग ची ने बालाघाट में अपना नया जीवन शुरू किया और वहीं के निवासी बन ग ...अधिक पढ़ें

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बालाघाट. साल 1962 में भारत और चीन के बीच हुआ युद्ध इतिहास में दर्ज है. कई भारतीय सैनिक चीन की सीमा में दाखिल हुए, तो कुछ चीनी सैनिक भारत की सीमा में दाखिल हो गए. उन्हीं में से एक है वांग ची. वांग ची बीते 62 सालों से भारत में ही हैं. या यू कहें तो वह भारत के ही होकर रह गए. 1 जनवरी 1963 को वह भूले भटके भारत की सीमा में आ गए थे. फिर सात सालों तक कभी दिल्ली की जेल में तो कभी अजमेर की जेल में रखा गया. सात साल बाद जब उन्हें युद्धबंदी के तौर बालाघाट के छोटे से कस्बे तिरोड़ी में छोड़ा दिया गया. फिर उन्होंने यहीं अपने जीवन यापन के लिए काम-काज शुरू कर दिया. फिर कुछ समय के बाद यहीं की सुशीला बाई से शादी कर ली. साथ उनके चार बच्चे हुए, लेकिन इसके बाद भी उनके जीवन से समस्याएं कम नहीं हुई. लगातार वह अपनो से मिलने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटते रहें. दूसरी तरफ स्थानीय पुलिस उन्हें परेशान करती रही. जानिए उनकी कहानी, जो किसी फिल्मी किस्से से कम नहीं लगती.

रात में टहलने तक वक्त भटके थे वांग ची
वांग ची के बेटे विष्णु वांग ने बताया कि वह 1962 के युद्ध विराम के बाद वह रात में खाना खाकर टहल रहे थे. ऐसे में वह अपने कैंप से भटक गए. रात भर भटकने के बाद सुबह उन्हें एक गाड़ी नजर आई. उन्होने उस गाड़ी को चीनी सैनिकों की गाड़ी समझी और उनसे मदद मांगने पहुंच गए. लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि वह गाड़ी रेडक्रॉस की है. वांग ची उनसे कहते रहे कि मैं गलती से इस तरफ आ गया हूं, लेकिन उनकी किसी न सुनी. उन्हें भारतीय सेना को सौंप दिया गया. इसके बाद उन्हें असम स्थित दिसपुर छावनी ले जाया गया. हफ्ते भर रखने के बाद उन्हें पूछताछ के लिए दिल्ली भेज दिया गया.

सात सालों तक कई जेलों में रहे
दिल्ली में उन्हें एक और चीनी सैनिक थुसूयु योंग मिले. इसके बाद दोनों पर साथ-साथ कार्रवाई चलती रही. दिल्ली में पूछताछ के बाद उन्हें (वांग ची और थुसयु योंग) सेंट्रल जेल अजमेर भेजा गया. यहां पर वह दोनों दो साल नौ महीने तक रहे. फिर उन्हें पंजाब स्थित केंद्रीय जेल वाफा भेजा गया. फिर वांग ची की सुनवाई चंडीगढ़ हाईकोर्ट में हुई. वहां, उनसे पुछा गया कि आपका क्या करें. जिसके जवाब में वांग ची ने कहा कि हम आपकी गिरफ्त में है, जो करना है कर लो. फिर उन्हें वापस जेल भेज दिया गया. एक महीने बाद अधिकारी ने कहा तुम्हें तुम्हारे देश नहीं भेजेंगे. भारत में रखेंगे, लेकिन कोई तकलीफ नहीं होगी. फिर उन्हें पंजाब पुलिस ने मध्य प्रदेश पुलिस को सौंपा.

1969 में दोनों चीनी सैनिक बालाघाट लाए गए
आखिरकार उन्हें भारत में रिहा कर दिया गया, लेकिन वह यहां से चीन नहीं जा सकते थे. उन्हें बालाघाट लाकर छोड़ दिया गया. वहां उन्हें काफी परेशान किया जाता था. एक पुलिसकंर्मी की मदद से वह तिरोड़ी में बस गए.

1974 में वांग ची ने सुशीला बाई से की शादी
जब वांग ची यहां के लोगों से घुल मिल गए तो लोगों ने उन्हें शादी करने की नसीहत दी थी. फिर उन्होंने शादी करने के लिए बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया. इसके बाद अप्रैल 1974 में सुशीला बाई से उनकी शादी हो गई. वांग ची के चार बच्चे है, जिनका नाम अनीता वांग, श्याम वांग, विष्णु वांग और आशा वांग. उनके बड़े बेटे श्याम वांग का निधन हो चुका है. अक्टूबर 2017 में उनकी पत्नी सुशीला बाई का निधन हो चुका है.

शादी के बाद उनकी पेंशन बंद कर दी गई
जब 1969 को वांग ची की रिहाई हुई थी, तब उन्हें 100 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती थी, लेकिन शादी के बाद उनकी पेंशन बंद कर दी गई. इसके लिए उन्होंने 2004 में तब के उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को चिट्ठी भी लिखी थी.

जीवन यापन के लिए दुकान खोली
वांग ची शुरुआत में मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते थे. समय के साथ बचत कर खुद की एक दुकान भी खोली, जिससे वह ठीक-ठाक कमाई भी कर लेते थे, लेकिन पुलिस उन्हें पैसों के लिए बार-बार तंग करती थी. ऐसे में कई बार पुलिस ने वांग ची की पिटाई की थी. पुलिस ने कई बार वांग ची पर झूठे आरोप भी लगाए. साल 1996 में पुलिस ने वांग ची को किसी मामले में हिरासत में लिया और डंडे और लात-घूसे से बेहद पिटाई की, जिससे उनकी पीठ और पैरों में गंभीर चोटें आई. इस घटना के बाद वांग ची ने दुकान बंद करने का फैसला लिया.

अक्सर अपनी मां और देश को याद कर रोते थे वांग ची
उनके बेटे विष्णु वांग बताते है कि वांग ची दिन भर अपने कामों में व्यस्त रहते, लेकिन जब भी रात होती वह अपने देश और परिवार को याद कर सारी-सारी रात रोते रहते थे. वह इतना रोते थे कि उनका सिरहाना आंशुओं से भीग जाता था.

पुलिस करती थी बेवजह परेशान
वांग ची बताते है कि तिरोड़ी पुलिस अक्सर उन्हें और उनके साथी थुसूयु योंग को चीनी होने के कारण बिना वजह कई बार परेशान किया जाता था. कई बार उन्हें पुलिस ने अलग-अलग आरोप लगाकर पिटाई की. साल 1996 में पुलिस ने उनकी पिटाई की थी तब वह कई दिनों तक चल भी नहीं पाए थे.

वांग ची बोले- ये देश अच्छा लेकिन कानून नहीं
चीनी सैनिक वांग ची ने बताया कि ये देश बेहतर है. जैसे व्यवहार करते हैं लोग भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं. भारत से हमें काफी प्यार मिला, लेकिन यहां का कानून ठीक नहीं है. इस देश में सिर्फ तीन लोगों की चलती है- पुलिस, पैसे वाले और नेताओं की. बाकी सब का शोषण होता है. चीन में ऐसा नहीं है. वहां सबके साथ समान व्यवहार होता है.

2013 में मिला चीनी पासपोर्ट
वांग ची सालों तक अपने वतन वापसी के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाते रहें, लेकिन कई सालों तक उन्हें कोई सुराग नहीं मिला. उन्होंने कलेक्टोरेट से लेकर विदेश मंत्रालय तक के कई चक्कर लगाए. वहीं, साल 2013 में चीनी दूतावास से खुशखबरी आई और उन्हें उनके वतन का पासपोर्ट मिल गया, लेकिन वतन वापसी का इंतजार अब भी जारी था. इसके बाद चीनी एम्बेसी से लगातार बातचीत होती रही और आखिरकार उन्हें 55 सालों के लम्बे इंतजार के बाद चीन जाने का मौका मिला.

चीन पहुंचे तो घंटों रोते रहे वांग ची
साल 2017 में वांग ची पूरे परिवार के साथ अपने वतन चीन पहुंचे थे. तब बीजिंग एयरपोर्ट पर उनके स्वागत के लिए काफी भीड़ थी. जब उन्होंने अपनो को देखा तो इतने सालों का दर्द आंखों से छलक पड़ा. साथ ही चीनी अधिकारियों ने माला और मिठाई खिलाकर उनका स्वागत किया.

अपने वतन गए लेकिन जिंदगी भर रहेगा अफसोस
सालों साल अपने वतन जाने की जद्दोजहद करते रहे वांग ची के मन में हमेशा से एक अफसोस रहने वाला है. वह हमेशा भारत सरकार से गुहार लगाते रहे कि उन्हें अपनी मां से मिलना है. लेकिन जब वह 55 साल बाद चीन पहुंचे तब उनकी मां वहां नहीं थी. चीन पहुँचने के बाद सबसे पहले वह अपनी मां की कब्र पर पहुंचे और करीब डेढ़ घंटे तक रोते रहे.

24 मार्च को ही खत्म हो चुका भारतीय वीजा
वांग ची के बेटे विष्णु वांग बताते है कि उनके पास चीनी पासपोर्ट है. यानी की वह चीनी नागरिक है. उन्हें पांच साल का भारतीय वीजा मिला था, जो 24 मार्च को ही एक्सपायर हो गया है. अब उनके बेटे विष्णु ने भारतीय वीजा के लिए अप्लाई किया है लेकिन अब तक उन्हें एम्बेसी से कोई जवाब नहीं आया. अब उनके बेटे विष्णु की मांग है कि भारत सरकार उन्हें आजीवन भारतीय वीजा दे, ताकि आगे उनके परिवार को कोई दिक्कत न आए.

उनके बच्चों को सरकारी दस्तावेज बनाने में आ रही दिक्कत
वांग ची के बच्चों को जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता तो मिल गई लेकिन कुछ जरूरी दस्तावेज आज भी नहीं बन पाए है. ऐसे में वह सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं.

पेंशन के सवाल पर बोले- मैं वहां रहता ही नहीं तो मुझे पेंशन कैसे मिलेगी
वांग ची से जब चीन से मिलने वाली पेंशन के बारे में सवाल पुछा, तो उन्होंने कहा कि मैं चीन में ही नहीं रहता,तो वहां की सरकार मुझे पेंशन क्यों देगी.

Edited by Anuj Singh

FIRST PUBLISHED :

November 27, 2024, 16:23 IST

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