गांवों में पशुओं की आंखों पर पट्टी बांधने की परंपरा, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

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Agency:News18 Chhattisgarh

Last Updated:February 01, 2025, 20:01 IST

Bilaspur News : छत्तीसगढ़ के गांवों में किसान मवेशियों की आंखों पर पट्टी बांधते हैं ताकि वे पुराने मालिक के घर न लौटें. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और पशुओं को नई जगह अपनाने में मदद करती है.

गांवों में पशुओं की आंखों पर पट्टी बांधने की परंपरा, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

गांवों में पशुओं की आंखों पर पट्टी बांधने की परंपरा.

हाइलाइट्स

  • छत्तीसगढ़ में पशुओं की आंखों पर पट्टी बांधने की परंपरा है.
  • यह परंपरा पशुओं को नए स्थान अपनाने में मदद करती है.
  • पुराने मालिक के घर लौटने से रोकने के लिए पट्टी बांधी जाती है.

बिलासपुर : भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कई पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, जो देखने में साधारण लगते हैं लेकिन उनके पीछे गहरी समझ और तर्क होते हैं. ऐसा ही एक रोचक प्रचलन छत्तीसगढ़ के गांवों में देखने को मिलता है, जहां किसान जब अपने मवेशियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं, तो उनकी आंखों पर पट्टी बांध देते हैं. यह परंपरा केवल आज की नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही है और इसके पीछे एक दिलचस्प कारण छिपा हुआ है. ग्रामीण किसानों के अनुसार, पशुओं की आंखों पर पट्टी बांधने का मुख्य कारण यह है कि वे अपने पुराने मालिक के घर लौटने का प्रयास न करें. आइए, इस परंपरा के पीछे की पूरी कहानी को विस्तार से जानते हैं.

पशुओं की याद्दाश्त और पुरानी जगह लौटने की प्रवृत्ति
गांव के बुजुर्गों और पशुपालकों का कहना है कि गाय, भैंस और बैल जैसी पालतू पशु अपनी पुरानी जगह को अच्छे से पहचानते हैं और नए स्थान पर जाने के बावजूद वे वापस लौटने की कोशिश करते हैं. विशेष रूप से तब, जब वे एक किसान से दूसरे किसान को बेचे जाते हैं. पशु जिस रास्ते से गुजरते हैं, वे उसे अपनी स्मृति में संजो लेते हैं और मौका मिलते ही उसी रास्ते से लौटने लगते हैं. यही कारण है कि जब किसान अपने खरीदे हुए पशु को घर लाते हैं, तो उनकी आंखों पर कपड़े की पट्टी बांध दी जाती है ताकि वे रास्ते को न पहचान सकें और नए स्थान को ही अपना घर मान लें.

पुरानी परंपरा जो आज भी कायम है
यह परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है. ग्रामीण किसानों के अनुसार, यह तरीका अत्यधिक प्रभावी है और इससे पशु नई जगह को जल्दी अपनाने लगते हैं. पहले जब सड़कों और यातायात की सुविधाएं कम थीं, तब किसान अपने मवेशियों को पैदल ही गांवों से दूसरे गांव ले जाते थे. ऐसे में अगर पशु रास्ते को पहचान लेते, तो वे भागकर वापस पुराने मालिक के घर चले जाते. इस समस्या से बचने के लिए ही आंखों पर पट्टी बांधने की यह प्रथा विकसित हुई.

आधुनिक दौर में भी प्रथा का पालन
हालांकि अब गांवों में ट्रक और अन्य परिवहन सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं, जिससे मवेशियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना आसान हो गया है, फिर भी आंखों पर पट्टी बांधने की परंपरा जारी है. यह केवल एक रीति-रिवाज नहीं, बल्कि पशु व्यवहार को नियंत्रित करने का एक पारंपरिक ज्ञान भी है. किसान मानते हैं कि पशुओं को नई जगह का आदी बनाने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए यह एक बेहतरीन तरीका है.

गांवों में प्रचलित यह परंपरा केवल एक मान्यता नहीं, बल्कि पशुओं के व्यवहार को समझने और उन्हें सही तरीके से नियंत्रित करने का एक अनूठा उपाय है. पशु भी इंसानों की तरह भावनात्मक होते हैं और वे अपने पुराने स्थान से भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं. इस परंपरा का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि वे नए स्थान को अपना घर मान लें और अपने नए मालिक के साथ सहजता से रह सकें. आधुनिक तकनीक और परिवहन के बावजूद, यह ग्रामीण ज्ञान आज भी कायम है और किसानों के लिए मददगार साबित हो रहा है.

Location :

Bilaspur,Chhattisgarh

First Published :

February 01, 2025, 20:01 IST

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