न्यूक्लियर एनर्जी का ग्लोबल लीडर बनने को भारत को कितना चाहिए वक्त और पैसा?

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Last Updated:February 12, 2025, 10:10 IST

PM Modi France Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस दौरे पर हैं. आज वह इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) साइट का दौरा करेंगे. भारत न्यूक्लियर एनर्जी में ग्लोबल लीडर बनने के लिए 2 बिलियन ...और पढ़ें

न्यूक्लियर एनर्जी का ग्लोबल लीडर बनने को भारत को कितना चाहिए वक्त और पैसा?

पीएम मोदी आज इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) साइट भी जाएंगे.

हाइलाइट्स

  • पीएम मोदी फ्रांस दौरे पर पहुंचे.
  • भारत न्यूक्लियर एनर्जी में 2 बिलियन डॉलर निवेश करेगा.
  • भारत का लक्ष्य 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता.

नई दिल्ली:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी फ्रांस दौरे पर हैं. बुधवार तड़के वह फ्रांस के मार्सिले पहुंचे. पीएम मोदी आज इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) साइट भी जाएंगे. यह एक प्रमुख साझेदार वैज्ञानिक प्रोजेक्ट है, जिसका उद्देश्य न्यूक्लियर फ्यूजन एनर्जी को बनाना है. इसमें भारत एक अहम साझेदार है. इसमें भारत का भी योगदान है. इसके रिएक्टर में मेड इन इंडिया क्रायोस्टेट लगा है. भारत भी न्यूक्लियर एनर्जी का सरताज बनना चाहता है. भारत भी अपने यहां परमाणु ऊर्जा यानी न्यूक्लियर एनर्जी को बढ़ावा देने चाहता है. इस तरह न्यूक्लियर एनर्जी का उपयोग करने की दिशा में पीएम मोदी का यह दौरा काफी अहम है. अब सवाल है कि आखिर भारत को इसमें कितना समय लगेगा और उसे कितने पैसों की जरूरत होगी.

दरअसल, न्यूक्लियर एनर्जी के मामले में भारत भी ग्लोबल लीडर बनना चाहता है. परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत ने रिसर्च में 2 बिलियन डॉलर (1,73,02,26,53,800 रुपए) से ज्यादा का निवेश करने का वादा किया है. साथ ही निवेश को बढ़ावा देने के लिए कानूनों में बदलाव भी करेगा.जिसका इशारा बीते दिनों बजट सत्र में निर्मला सीतारणण ने किया. बिजली उत्पादन बढ़ाने और उत्सर्जन को कम करने की योजना के तहत भारत के वित्त मंत्री ने इस महीने की शुरुआत में ये घोषणाएं की थीं.

कितने घर होंगे रोशन
परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने का एक ऐसा तरीका है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है. जीरो कार्बन उत्सर्जन होता है और हवा जहरीली भी नहीं होती. हालांकि, इससे रेडियोधर्मी कचरा जरूर पैदा होता है. भारत दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जित करने वाले देशों में से एक है. यहां 75% से ज्यादा बिजली अभी भी जीवाश्म ईंधन को जलाकर पैदा की जाती है, जिसमें ज्यादातर कोयला इस्तेमाल होता है. भारत का लक्ष्य साल 2047 तक कम से कम 100 गीगावाट की परमाणु एनर्जी क्षमता हासिल करना है. इससे लगभग 6 करोड़ भारतीय घरों को एक साल तक बिजली दी जा सकेगी.

क्यों जरूरी हैं न्यूक्लियर एनर्जी
ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया को कोयला, तेल और गैस जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन से दूर करने के लिए परमाणु ऊर्जा जैसे स्रोतों की जरूरत है जो सूरज और हवा पर निर्भर नहीं हैं. इसकी वजह है कि ये हमेशा उपलब्ध नहीं होते हैं. हालांकि, कुछ लोग भारत की महत्वाकांक्षाओं को लेकर संशय भरी नजरों से देखते हैं. इसकी वजह है कि क्योंकि भारत का परमाणु क्षेत्र अभी भी बहुत छोटा है. लोगों में इंडस्ट्री को लेकर नकारात्मक धारणा अभी भी बनी हुई है. इसी धारणा को बदलने के लिए मोदी सरकार परमाणु दायित्व कानून में बदलाव करने जा रही है.

ट्रंप का फैसला होगा फायदेमेंद
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, कोलंबिया यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑन ग्लोबल एनर्जी पॉलिसी में सीनियर रिसर्च एसोसिएट शायंक सेनगुप्ता ने कहा कि इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए ट्रंप प्रशासन का व्यापार को फिर से शुरू करने का फैसला फायदेमंद हो सकता है. भारत की परमाणु विकास योजना अमेरिकी निर्यात के लिए काफी अवसर प्रदान करती है. कारण कि अमेरिका में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र बहुत अधिक विकसित है. कंपनियां छोटे और सस्ते परमाणु रिएक्टरों जैसी तकनीक में विकास कर रही हैं. भारत भी छोटे रिएक्टरों में निवेश कर रहा है.

अमेरिका में पीएम करेंगे बड़ा काम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस से सीधे अब अमेरिका जाएंगे. आज यानी 12 फरवरी की रात को अमेरिका पहुंचेंगे और राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात करने वाले हैं. उम्मीद है कि दोनों नेता अन्य मुद्दों के अलावा परमाणु ऊर्जा पर भी चर्चा करेंगे. भारत में परमाणु ऊर्जा सौर ऊर्जा से लगभग तीन गुना महंगी है. इसे स्थापित होने में छह साल तक का समय लग सकता है.जबकि समान क्षमता वाले सौर ऊर्जा संयंत्र को आमतौर पर एक साल से भी कम समय लगता है. नए छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर सस्ते होते हैं और जल्दी बन जाते हैं लेकिन ये कम बिजली भी बनाते हैं.

कहां है चुनौती
भारत पिछले एक दशक में देश में स्थापित परमाणु ऊर्जा की मात्रा को दोगुना करने में कामयाब रहा है. मगर अभी भी यहां सिर्फ 3% बिजली ही इससे बनती है. फिर भी क्लाइमेट थिंक-टैंक एंबर में ऊर्जा विश्लेषक रुचिता शाह ने कहा का मानना है कि पहली चुनौती लोगों को यह समझाने की है कि परियोजनाओं को उनके आसपास के क्षेत्रों में लगाया जाए. इससे उन्हें नुकसान नहीं है. पिछले एक दशक में स्थानीय लोगों ने दक्षिण भारत में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र और महाराष्ट्र में प्रस्तावित परमाणु स्थलों पर सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं का हवाला देते हुए विरोध प्रदर्शन किया है. दुनिया में इस समय 63 परमाणु रिएक्टर निर्माणाधीन हैं जो कि 1990 के बाद से सबसे ज्यादा है.

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Delhi,Delhi,Delhi

First Published :

February 12, 2025, 10:08 IST

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