हाइलाइट्स
भारत और चीन में 4 साल से चल रही तनातनी अब शांति की तरफ बढ़ रही है.भारत, चीन और रूस के पास पश्चिमी देशों की पावरगेम खत्म करने का मौका.तीनों का आपसी सहयोग बड़ी आबादी की जरूरतों को आसानी से कर सकता है पूरा.
नई दिल्ली. भारत और चीन में 4 साल से चल रही तनातनी अब शांति की तरफ बढ़ रही है. दोनों देशों के बीच LAC पर 2020 वाली स्थिति में पेट्रोलिंग पर एक व्यवस्था को लेकर सहमति बनी है. इसी बीच भारतीय प्रधानमंत्री ब्रिक्स (BRICS) की बैठक में भाग लेने के लिए रूस में हैं. माना जा रहा है कि भारत और चीन के बीच आसने-सामने बातचीत भी हो सकती है. कुल मिलाकर यह एक ऐसा गणित बन रहा है, जिससे दुनिया का पूरा ‘भूगोल’ बदल सकता है. रूस में रहते हुए यदि भारत और चीन पास-पास आते हैं, तो यही माना जाएगा कि रूस के प्रयास रंग लाए. ऐसे में इन तीनों की संभावित ‘यारी’ की तरफ दुनिया की नजरें रहेंगी. वही दुनिया, जो खुद को पावर सेंटर कहती है. तीनों देशों के पास आने से दुनिया का पावर सेंटर पश्चिमी देशों से शिफ्ट होकर एशिया में आना तय होगा. हालांकि यह सब इतना आसान नहीं है, जितना कि लिखना या बात करना. फिर भी यदि संभावनाओं पर गौर किया जाए तो तीनों देशों के लिए विन-विन सिचुएशन बनेगी.
दुनिया की 36 फीसदी आबादी वाले इन तीनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मिला लिया जाए तो यह दुनिया की जीडीपी का कुल 26 फीसदी बनता है. 2023 के आंकड़ों के मुताबिक, चीन 19.37 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. भारत 3.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनमी है. इसी तरह रूस की जीडीपी भी 1.88 ट्रिलियन डॉलर की है. रूस की इकॉनमी बेशक तीनों में छोटी है, मगर तेल-गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों के भंडार के चलते वह काफी पावरफुल स्थिति में है.
तीनों यदि एकसाथ आते हैं तो 2.8 बिलियन लोगों का एक बाजार होगा और उस बाजार की जरूरतें पूरा करने में ही बिजनेस के भी खूब पनपने की संभावनाएं होंगी. जब बाजार की बात आती है तो इसमें ऊर्जा, टेक्नोलॉजी, इंफ्रास्ट्रक्चर, और करेंसी स्वैपिंग के क्षेत्रों में एक दूसरी की मदद हो सकेगी और बड़ी आबादी की बड़ी जरूरतों को बेहतर तरीके से पूरा किया जा सकेगा.
ऊर्जा सहयोग से तीनों का लाभ
चीन और भारत, अमेरिका के बाद, विश्व के सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता हैं. 2022 में, चीन ने लगभग 140 एक्साजूल (Exajoules) ऊर्जा का इस्तेमाल किया, जबकि भारत ने 35 एक्साजूल की खपत हुई थी. रूस के पास सबसे बड़े प्राकृतिक गैस भंडार (47.8 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर) हैं और यह तेल का दूसरा अमेरिका के बाद सबसे बड़ा निर्यातक देश है.
रूस यूरोप की 40 फीसदी गैस आपूर्ति करता है, लेकिन पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते उसने अपना ध्यान एशिया की ओर केंद्रित करना शुरू किया है. 2022 में, रूस ने चीन को 80 मिलियन टन और भारत को 40 मिलियन टन तेल निर्यात किया. 2023 तक, भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक बन गया. हमने प्रति दिन 1.64 मिलियन बैरल तेल खरीदा, जो युद्ध से पहले की तुलना में 33 गुना अधिक है. यह भारत के कुल तेल आयात का 40% से भी अधिक है. यह साझेदारी भारत और चीन को बड़े स्तर की एनर्जी सिक्योरिटी प्रदान कर सकती है. यदि रूस, भारत और चीन के बीच ऊर्जा को लेकर सहयोग होता है तो वैश्विक स्तर पर अस्थिर बाजारों और पश्चिमी प्रतिबंधों से बचा जा सकता है. यह तीनों देशों के लिए बेहतर स्थिति होगी.
तकनीक में भारत और चीन अव्वल
चीन ने टेक्नोलॉजी में भारी निवेश किया है. 2023 तक 5G में ग्लोबल लीडर बनते हुए उसने 2.3 मिलियन से अधिक बेस स्टेशन स्थापित किए हैं. चीन की कंपनियां (हुवावे) पर भी पश्चिमी देशों में बैन लगाया गया है और उसे इस क्षेत्र में काफी सीमित कर दिया गया है.
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भारत की बात करें तो वह भी आईटी क्षेत्र में एक महाशक्ति बनकर उभरा है. सॉफ्टवेयर और सर्विसेज इंडस्ट्री वित्त वर्ष 23 में 227 बिलियन डॉलर (18.9 लाख करोड़ रुपये) की हो गई है. रूस रक्षा टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष अन्वेषण (Roscosmos) और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) में अपनी पावर के लिए जाना जाता है, जिससे इन तीन देशों के बीच टेक्नोलॉजी के लेवल पर आदान-प्रदान एक हाई वैल्यू बना सकता है.
खुलेंगे नए व्यापार मार्ग
भारत, रूस और ईरान एक 7,200 किलोमीटर लंबे जहाज, रेल और सड़क मार्ग नेटवर्क पर काम कर रहे हैं. इस मार्ग को इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) कहा जाता है. यह मार्ग व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है, क्योंकि यह परिवहन लागत को 30 फीसदी तक घटा सकता है और स्वेज नहर मार्क की तुलना में 40 फीसदी समय भी बचा सकता है. हालांकि अभी चीन इसका हिस्सा नहीं है, लेकिन यदि चीन भी इस मार्ग में जुड़ता है तो उसके लिए व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे. परंतु, इसके लिए उसे पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों पर फिर से विचार करना होगा.
पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती!
चीन की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता, रूस के प्राकृतिक संसाधन और भारत की बढ़ती औद्योगिक क्षमता के साथ, ये देश एक पावरफुल ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की क्षमता रखते हैं. 2023 में, चीन का मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट 4.86 ट्रिलियन डॉलर (404 लाख करोड़ रुपये) था, जो उसे दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर बनाता है.
रूस दुनिया का 30% प्राकृतिक गैस और 12% तेल उत्पादन करता है. मैन्युफैक्चरिंग के लिए वह ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत बनकर बड़ी भूमिका निभा सकता है. भारत की औद्योगिक विकास दर 2023 में 7.2% रही, और उसका विनिर्माण क्षेत्र 2025 तक 1 ट्रिलियन डॉलर (82 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचने की उम्मीद है.
टेक्नोलॉजी, डिजिटल करेंसी और वैकल्पिक पेमेंट सिस्टम्स के मिलकर आगे बढ़ने से पश्चिम-नियंत्रित पेमेंट नेटवर्क्स (जैसे SWIFT) पर निर्भरता को कम किया जा सकता है. रूस की SPFS (सिस्टम फॉर ट्रांसफर ऑफ फाइनेंशियल मैसेजेस) का उपयोग 400 से अधिक रूसी बैंकों द्वारा किया जा रहा है और यह SWIFT का विकल्प है.
चीन का CIPS ( क्रॉस बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम) 128 देशों में 1,300 से अधिक वित्तीय संस्थानों के साथ जुड़ा हुआ है, जो पश्चिमी पेमेंट नेटवर्क्स की बजाय इसे एक मजबूत विकल्प बनाता है. यूपीआई में भारत ने अपना दम दिखाया है और दुनिया के कई देश इस सिस्टम को खुले हाथों से अपना रहे हैं. डिफेंस, अंतरिक्ष अन्वेषण (ISRO), 50 बिलियन डॉलर का भारतीय फार्मा सेक्टर, और रिन्यूएबल ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में तीनों देशों का सहयोग पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है.
नाटो का विकल्प?
2022 में, रूस ने अपने सैन्य खर्च पर 86.4 बिलियन डॉलर खर्च किए, जबकि चीन ने 293.4 बिलियन डॉलर आवंटित किए. चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश है. भारत 73 बिलियन डॉलर के बजट के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला है.
तीनों देशों का संयुक्त सैन्य खर्च लगभग 453 बिलियन डॉलर (37.8 लाख करोड़ रुपये) है, जबकि NATO का कुल बजट 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है. बेशक NATO इन तीन देशों से अधिक खर्च करता है, फिर भी इन देशों की संयुक्त ताकत वैश्विक सैन्य संतुलन पर असर डाल सकती है.
पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा भारत-चीन का रिश्ता: विदेश मंत्री
भारत-चीन के बीच आए ताजा अपडेट से पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर कह चुके हैं कि ‘चीन के साथ भारत का संबंध न केवल एशिया के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि इस तरह से शायद दुनिया के भविष्य को भी प्रभावित करेगा.’
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले महीने न्यूयॉर्क में कहा था कि भारत-चीन सीमा विवाद में 75 प्रतिशत प्रगति हुई है, जो पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की वापसी से संबंधित है. एस जयशंकर ने यह भी कहा था कि बातचीत चल रही है और तनाव कम करने की आवश्यकता है. भारत-चीन संबंध एशिया और दुनिया के भविष्य को प्रभावित करेंगे. इस कार्यक्रम में जयशंकर ने जोर देकर कहा था- ‘मुझे लगता है कि भारत-चीन संबंध एशिया के भविष्य की कुंजी है.’
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FIRST PUBLISHED :
October 22, 2024, 12:08 IST