Last Updated:January 21, 2025, 10:29 IST
मेला प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार मेला खत्म होने के बाद इन पुलों का रखने का कोई मतलब नहीं होगा. क्योंकि इनका उपयोग नहीं रहेगा. इनके मेंटीनेंस में भी खर्च आता है. साथ ही इनकी चौबीसों घंटे निगरानी की जरूरत...और पढ़ें
प्रयागराज. महाकुंभ में पीपे के पुल लाइफलाइन हैं. संगम क्षेत्र और अखाड़ा क्षेत्र के बीच पीपे के पुल ही आवागमन के मार्ग हैं. पूरे मेला क्षेत्र में 30 लोहे के पुल बने हैं. लोगों के मन में यह बात जरूर आ रही होगी कि मेला खत्म होने के बाद इन लोहे के पुलों को क्या होगा. ये यहीं रहेंगे, या फिर हटा दिया जाएगा. अगर हटा दिया जाएगा तो पीपों को रखा कहां जाएगा. आइए जानते हैं कि मेले के बाद इनका क्या किया जाएगा.
मेला प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार मेला खत्म होने के बाद इन पुलों का रखने का कोई मतलब नहीं होगा. क्योंकि इनका उपयोग नहीं रहेगा. इनके मेंटीनेंस में भी खर्च आता है. साथ ही इनकी चौबीसों घंटे निगरानी करनी होती है. महाकुंभ समाप्त होने के बाद इन पुलों को अलग कर सुरक्षित स्थानों पर रखा जाएगा. कुछ पुलों (पीपों) को सराइनायत (कनिहार), त्रिवेणीपुरम और परेड ग्राउंड, प्रयागराज में रखा जाएगा. अर्धकुंभ में इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीं, कुछ को उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में अस्थायी पुलों के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
पुलों के निर्माण में लग गए सवा साल
इन पुलों के निर्माण में 15 महीने का समय गल गया है. अगस्त 2023 में निर्माण का काम शुरू हुआ था. 30 पीपे के पुलों के निर्माण में 2,213 पांटून (विशाल लोहे के खोखले डिब्बे) का उपयोग किया गया, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. इसमें 1,000 से अधिक मजदूरों, इंजीनियरों और अधिकारियों ने 14-14 घंटे तक काम किया. अक्टूबर 2024 तक इन पुलों का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया था.
नागवासुकी मंदिर पुल सबसे महंगा
30 पीपे के पुलों के निर्माण में 17.31 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. इनमें से नाग़वासुकी मंदिर से झूंसी तक बना पुल सबसे महंगा (1.13 करोड़ रुपये) पड़ा, जबकि गंगेश्वर और भारद्वाज पुल की लागत 50 लाख से 89 लाख रुपए के बीच रही है.
बड़ी क्रेनों की मदद से किया गया निर्माण
मजबूत लोहे की चादरों से बने खोखले पांटून को क्रेन की मदद से नदी में उतारा गया. फिर इन पर गर्डर रखकर नट और बोल्ट से कसा गया. बाद में हाइड्रोलिक मशीनों से पांटून को सही जगह पर फिट किया जाता है. इसके बाद लकड़ी की मोटी पट्टियों, बलुई मिट्टी और लोहे के एंगल से पुल को और अधिक मजबूत बनाया गया. अंत में पुल की सतह पर चकर्ड प्लेटें लगाई जाती हैं ताकि श्रद्धालुओं और वाहनों के आने जाने के लिए सतह मजबूत बनी रहे.
पांच टन का है एक पीपा
एक पांटून का वजन लगभग 5 टन होता है, फिर भी यह पानी में तैरता है. इसकी वजह आर्किमिडीज का सिद्धांत है. पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों के अनुसार, “जब कोई वस्तु पानी में डूबी होती है, तो वह अपने द्वारा हटाए गए पानी के बराबर भार का प्रतिरोध सहन कर सकती है. यही सिद्धांत भारी-भरकम पांटून को पानी में तैरने में मदद करता है. पुलों की डिजाइन इस तरह बनाई गई है कि यह 5 टन तक का भार सहन कर सके.
Location :
Allahabad,Uttar Pradesh
First Published :
January 21, 2025, 10:29 IST
महाकुंभ: मेला खत्म होने के बाद पीपे के पुलों का क्या होगा? कहां रखे जाएंगे