लीची की बेहतर पैदावार के लिए ऐसे खेत तैयार करें किसान, बढ़िया होगी कमाई

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Last Updated:January 11, 2025, 21:58 IST

Muzaffarpur News : गांव के किसान लीची के टूटने के बाद अपनी बागवानी की तैयारी में जुट जाते हैं. जब लीची के फल टूट जाते हैं, तो किसान पहले बागवानी की जुताई करते हैं. यदि नई बागवानी लगानी हो तो लीची के पौधों के बीच...और पढ़ें

मुजफ्फरपुर की लीची तो सभी जानते हैं, लेकिन वैशाली जिले के छोटे से गांव कटरमाला की लीची बागवानी भी चर्चा का विषय है. इस गांव का क्षेत्रफल करीब 750 एकड़ है और यहां की आबादी लगभग 5000 है. इस गांव में 300 एकड़ में लीची की बागवानी की जाती है और यह परंपरा 1950 से चली आ रही है.

गांव के किसान लीची के टूटने के बाद अपनी बागवानी की तैयारी में जुट जाते हैं. जब लीची के फल टूट जाते हैं, तो किसान पहले बागवानी की जुताई करते हैं. यदि नई बागवानी लगानी हो तो लीची के पौधों के बीच 8 से 10 मीटर की दूरी रखनी चाहिए. इसके लिए पहले 1 मीटर गहरे गड्ढे खोदकर 15 दिनों तक खुले में रखे जाते हैं. फिर इनमें 10 किलो गोबर की खाद और मिट्टी मिलाकर भर दिया जाता है. इसके बाद पौधे लगाए जाते हैं और पानी दिया जाता है.

किसान विपिन कुमार पांडे बताते हैं कि उनके गांव में 1950 से लीची की बागवानी हो रही है और उनके पूर्वज एक एकड़ में बागवानी करते थे. समय के साथ-साथ मिट्टी लीची की बागवानी के लिए उपयुक्त होती गई और अब यह क्षेत्र इस खेती में उन्नति की ओर बढ़ रहा है.

लीची की बागवानी का तरीका भी खास है. जून महीने में लीची के फल टूटने के बाद किसान गहरी जुताई करते हैं और पौधों के पास रिंग बनाकर उसमें 50 किलो सड़ा हुआ गोबर, 1.5 किलो डाई और 1.5 किलो पोटाश डालते हैं फिर उस रिंग को मिट्टी से ढक दिया जाता है. अगर बारिश नहीं होती तो किसान सिंचाई भी करते हैं. सितंबर महीने में पौधों की पोताई की जाती है. इस दौरान चुना, बलाई टोकस और तोतिया मिलाकर पौधों की पुताई की जाती है। यह पोताई पौधों के चार फीट ऊपर तक की जाती है.

कटरमाला में लीची की दो प्रमुख किस्में होती हैं – साही और चाइना साही. साही लीची हर साल फल देती है, जबकि चायना लीची हर दूसरे साल फल देती है. 2012 के बाद, किसानों ने लीची अनुसंधान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर गलनी मेथड अपनाया है, जिसके बाद अब चायना साही लीची भी हर साल फलने लगी है. गलनी मेथड का मतलब है कि अगर एक पौधे में दो दहनी (डंठल) हैं, तो एक को गलनी कर दिया जाता है.

अगस्त और सितंबर में लीची के नए पट्टे आते हैं, जिनमें कीड़े लग जाते हैं. इन कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए किसान दवा का छिड़काव करते हैं.

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