शादी के कार्ड पर चिरंजीव और आयुष्मति क्यों लिखा जाता है? जानें इससे जुड़ी कथा

3 hours ago 1

Last Updated:January 21, 2025, 16:01 IST

Wedding Card: शादी के कार्ड पर आपने अक्सर देखा होगा वर के नाम से पहले 'चिरंजीव' और वधू के नाम से पहले 'आयुष्मति' लिखा जाता है. इसे लिखने के पीछे एक कथा है.

शादी के कार्ड पर चिरंजीव और आयुष्मति क्यों लिखा जाता है? जानें इससे जुड़ी कथा

शादी के कार्ड पर चिरंजीव और आयुष्‍मती लिखने के पीछे एक कथा है.

Wedding Card Chiranjeev Ayushmati: भारतीय संस्कृति में विवाह एक अटूट और पवित्र बंधन है और विवाह के निमंत्रण पत्र जिन्हें हम शादी के कार्ड के नाम से जानते हैं इस उत्सव का एक अभिन्न अंग हैं. आपने अक्सर देखा होगा कि इन पत्रों पर वर के नाम से पहले ‘चिरंजीव’ और वधू के नाम से पहले ‘आयुष्मति’ लिखा जाता है. क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? आइए इस प्राचीन परंपरा के पीछे छिपे रहस्य को जानते हैं.

चिरंजीवी और सौभाग्यकांक्षिणी की कथा:

इस परंपरा के मूल में एक सुंदर पौराणिक कथा है. एक समय की बात है एक ब्राह्मण दंपति संतानहीन थे. संतान प्राप्ति की कामना लिए उन्होंने महामाया की घोर आराधना की. देवी प्रसन्न हुईं और उन्हें वरदान देने के लिए प्रकट हुईं लेकिन उन्होंने ब्राह्मण के सामने दो विकल्प रखे, पहला एक पुत्र जो महामूर्ख होगा, पर दीर्घायु होगी या एक पुत्र जो विद्वान होगा पर केवल पंद्रह साल तक ही जीवित रहेगा. ब्राह्मण ने विद्वान पुत्र को चुना.

ये भी पढ़ें: आज 21 जनवरी को मंगल करेगा दंगल, इन तारीखों में जन्मे लोगों की लव लाइफ और शादीशुदा जिंदगी में आएगा तूफान, रहें अलर्ट वरना…

समय आने पर ब्राह्मण के घर एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ पर माता-पिता पुत्र की अल्पायु को लेकर चिंतित रहते थे. पिता ने पुत्र को शिक्षा के लिए काशी भेजा जहां उसकी भेंट एक सेठ की कन्या से हुई और दोनों का विवाह संपन्न हुआ. वह कन्या भी महामाया की परम भक्त थी. दुर्भाग्यवश विवाह के दिन ही उस ब्राह्मण पुत्र का अंतिम दिन था और यमराज एक नाग के रूप में उसका जीवन हरने आए. नाग ने लड़के को डस लिया पर उसकी पत्नी ने तत्परता दिखाते हुए उस नाग को एक टोकरी में बंद कर दिया. वह नाग स्वयं यमराज थे जिसके कारण यमलोक का सारा कार्य ठप हो गया.

अपने पति के प्राण बचाने के लिए वह नवविवाहिता महामाया की उपासना में लीन हो गई. उसकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर देवी प्रकट हुईं और उन्होंने उस कन्या से यमराज को मुक्त करने को कहा. कन्या ने देवी की आज्ञा का पालन किया. यमराज ने देवी के आदेशानुसार उस ब्राह्मण पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया और उसे ‘चिरंजीवी’ होने का वरदान दिया. यमराज ने ही उस कन्या को ‘सौभाग्यवती’ कहकर संबोधित किया. तभी से विवाह के अवसर पर वर के ‘चिरंजीवी’ होने और वधू के ‘सौभाग्यकांक्षिणी’ (यानी सौभाग्यवती होने की कामना रखने वाली कन्या) होने के आशीर्वाद स्वरूप ये शब्द वर-वधू के नाम के आगे लिखे जाते हैं.

दूसरी पौराणिक गाथा

एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन काल में आकाश नामक एक धर्मात्मा राजा थे जो संतानहीन थे. नारद मुनि के परामर्श पर उन्होंने भूमि पर यज्ञ किया और सोने के हल से धरती को जोता जिससे उन्हें भूमि माता से एक कन्या प्राप्त हुई.

ये भी पढ़ें: Masik Shivratri 2025 Date: कब है माघ मासिक शिवरात्रि? बन रहे 3 शुभ संयोग, जानें तारीख, मुहूर्त, शिववास समय

जब राजा उस कन्या को अपने महल में ला रहे थे तो रास्ते में एक भयंकर शेर प्रकट हुआ जो उस कन्या को अपना भोजन बनाना चाहता था. शेर को देखकर राजा के हाथ से डर के मारे कन्या नीचे गिर पड़ी. शेर ने उसे अपने मुख में डाल लिया और वह कन्या तत्काल एक कमल के पुष्प में परिवर्तित हो गई.

उसी क्षण श्री हरि विष्णु वहां प्रकट हुए और उन्होंने उस कमल को स्पर्श किया. वह फूल यमराज में बदल गया और कन्या पच्चीस वर्ष की सुंदर युवती बन गई. उसी समय राजा ने अपनी पुत्री का विवाह श्री हरि विष्णु से संपन्न कराया. यमराज ने उस कन्या को ‘आयुष्मति’ कहकर पुकारा. यहीं से वधू के नाम के आगे ‘आयुष्मति’ लिखने की परंपरा का आरंभ हुई.

First Published :

January 21, 2025, 16:01 IST

homeastro

शादी के कार्ड पर चिरंजीव और आयुष्मति क्यों लिखा जाता है? जानें इससे जुड़ी कथा

*** Disclaimer: This Article is auto-aggregated by a Rss Api Program and has not been created or edited by Nandigram Times

(Note: This is an unedited and auto-generated story from Syndicated News Rss Api. News.nandigramtimes.com Staff may not have modified or edited the content body.

Please visit the Source Website that deserves the credit and responsibility for creating this content.)

Watch Live | Source Article