बिहार में मुजफ्फरपुर की सुजनी कढ़ाई को जीआई टैग दिलाने में बड़ी भूमिका निभाने वाली निर्मला देवी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। निर्मला देवी ने सुजनी कढ़ाई कला को न केवल पूर्ण जीवित किया, बल्कि देश-विदेश के बाजारों में भी इसे लोकप्रिय बनाया है। उनके इस प्रयास को देखते हुए गणतंत्र दिवस के पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने उन्हें पद्म अवार्ड देने का ऐलान किया। 76 वर्षीय निर्मला देवी को पद्मश्री अवार्ड सुजनी कला के लिए मिला है। सूती कपड़ों पर सुजनी कढ़ाई से आकर्षण कलाकृतियां बनाने वाली निर्मला देवी के प्रयास से जिले की कई महिलाओं को आजीविका और आत्मनिर्भरता मिला।
सुजनी कला की वैश्विक राजदूत बन गईं
छोटे से खपरैल के मकान में चादर पर कशीदाकारी करतीं निर्मला देवी को जब पद्मश्री सम्मान मिलने की सूचना दी गई, तो उन्होंने मंद-मंद मुस्कान के साथ कहा कि यह सम्मान मेरा नहीं, बल्कि सुजनी कला से जुड़ी हर महिला का है। निर्मला देवी ने सुजनी कढ़ाई को पिछले चार दशकों में पुनर्जीवित किया है। उन्होंने न केवल सुजनी कलाकृति को जीवित रखा, बल्कि इसे देशभर के शहरी बाजारों में भी लोकप्रिय बनाया है। वह सुजनी कला की वैश्विक राजदूत बन गई हैं। कभी मिलो पैदल चलकर चरखा चलाने वाली निर्मला देवी की बनाई कशीदाकारी लंदन और अमेरिका के म्यूजियम में भी लगी है।
ससुराल वालों ने छोड़ा तो मायके ने थामा
इस सम्मान के मिलने की खबर के बाद मुजफ्फरपुर के भूसरा गांव में खुशी का माहौल है। शादी के 12 साल बाद ही निर्मला देवी मायके लौट आई थीं। गोद में एक बेटी और चेहरे पर लंबी यात्रा का दर्द था। गांव वालों के पास सवालों की बौछार थी, मगर घर वालों ने अपनाकर उन्हें थाम लिया। आज इसी बेटी के कारण भूसरा गांव राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाया हुआ है, तो हर तरफ खुशी का माहौल है।
पद्मश्री से सम्मानित होंगी निर्मला देवी
1000 से अधिक महिलाओं प्रशिक्षित किया
मुजफ्फरपुर स्थित भूसरा महिला विकास समिति की संस्थापक और अध्यक्ष के रूप में निर्मला देवी ने 15 से अधिक गांवों की 1000 से अधिक महिलाओं को सुजनी कढ़ाई में प्रशिक्षित किया, जिससे उन्हें आजीविका मिल सके। जब इस कला को गांव के बाहर के लोगों ने देखा और इसकी सराहना की, तो तेजी से इसका प्रचार-प्रसार शुरू हुआ और जीआई टैग भी मिल गया। सुजनी कढ़ाई वो कशीदाकारी है, जो समय के साथ बदलती गई। क्षेत्र की महिलाएं कई दशकों से नवजात शिशुओं को लपटने के लिए पुरानी साड़ियां, धोती और कपड़ों के टुकड़ों को मिलाकर एक शॉल बनाती थीं। बाद में सुजनी कढ़ाई में कपड़ों पर मछली, घर, फूल और अन्य आकर्षण कलाकृतियों को बनाने का काम शुरू हुआ, जिसके कारण सुजनी कढ़ाई की कला इलाके ही नहीं, पूरे देश में मशहूर हो गई।
सुजनी कढ़ाई को 2006 में जीआई टैग मिला
ग्रामीण महिलाओं की इस शिल्पकला को 2006 में जीआई टैग मिला। अब महिलाएं सुजनी कढ़ाई की मदद से कुशन कवर, लेटर होल्डर, कढ़ाई वाले पैच से लेकर कुर्ते और साड़ियां बेच रही हैं। निर्मला देवी ने बताया कि साल 1960 में शादी हुई और 1972 में ससुराल वालों ने उन्हें छोड़ दिया। पति नशा करते थे और मारपीट भी करते थे। 2010 में जब पति कालिका प्रसाद सिंह बीमार हुए तो उन्हें अपने पास ले आईं और बेटी के घर पर ही पति की 2011 में मौत हो गई। निर्मला देवी ने बताया कि एक बेटी है, जिसकी शादी दरभंगा में हुई है। दामाद शिक्षक हैं। दो नाती और एक नातिन है। निर्मला के भाई की मौत हो चुकी है। भाभी और दो भतीजे हैं।
(रिपोर्ट- संजीव कुमार)
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