Last Updated:February 06, 2025, 13:00 IST
Child Survey Report: एक सर्वे रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि स्कूली बच्चे, बाजार के गुणा गणित को आसानी से हल नहीं कर पाते, जबकि बाजार में काम करने वाले बच्चे इस सवालों को सेकंडों में सॉल्व कर देते हैं.
Child Survey Report: अगर कोई आपसे पूछे कि 20 रुपये किलो आलू है तो 800 ग्राम का दाम कितना होगा या 15 रुपये किलो प्याज है तो 1.4 किलो की कीमत कितनी होगी? शायद इसको जोड़ने-घटाने में आपके बच्चे को या आपको काफी वक्त लग जाए, हो सकता है कि कैलकुलेटर की सहायता भी लेनी पड़े, लेकिन बाजार में दुकानों पर काम करने वाले बच्चे चंद सेकंड में इसका हिसाब-किताब फटाफट बता देते हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि एक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ कि बड़े-बड़े कॉन्वेंट में पढ़ने वाले बच्चे इस तरह का हिसाब लगाने के लिए कैलकुलेटर निकालते हैं, जबकि बाजार में काम करने वाले बच्चे सेकंडों में इसे हल कर देते हैं.
काम करने बच्चे फटाफट बताते हैं हिसाब
नोबेल पुरस्कार विजेता एस्थर डुफ्लो और अभिजीत बनर्जी समेत एक टीम ने भारत के बच्चों की मैथ्स स्किल्स को समझने के लिए एक रिसर्च किया, जिसमें शोधकर्ताओं ने बाजार में काम करने वाले बच्चों की मैथ्स स्किल्स परखने के लिए उनसे ऐसी मात्रा में सामान खरीदा, जो सामान्य से कम या अधिक थे. शोधकर्ताओं ने दुकान पर बैठने वाले बच्चों से 20 रुपये किलो बिकने वाले आलू में से 800 ग्राम आलू और 15 रुपये किलो बिक रहे प्याज में से 1.4 किलोग्राम प्याज खरीदे. बाजार में काम करने वाले बच्चों ने फटाफट इसका हिसाब बता दिया. रिसर्च करने वाली टीम ने पाया कि बाजार में काम करने वाले बच्चे कठिन से कठिन हिसाब किताब को आसानी से सेकंडों में हल कर सकते हैं, लेकिन वहीं अगर उन्हें किताब से कोई सवाल हल करने को दिया जाता है, तो उसे हल करने में उन्हें परेशानी होती है. दूसरी ओर, स्कूल के छात्र किताबों में पढ़ाए गए गणित में तो अच्छे होते हैं, लेकिन बाजार में होने वाली गुणा गणित में फेल हो जाते हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, इस रिसर्च में दिल्ली और कोलकाता के बाजारों के कुल 1,436 बाल विक्रेताओं और 471 स्कूली छात्रों को शामिल किया गया था. इस रिसर्च में शामिल सभी बच्चे 17 वर्ष से कम उम्र के थे, जिनमें अधिकांश की उम्र 13 से 15 वर्ष के बीच थी. इसमें भी एक खास बात यह थी कि रिसर्च में जिन बाल विक्रेताओं को शामिल किया गया था, उनमें से कई बच्चे ऐसे थे, जो या तो पहले स्कूल जा चुके थे या जिन्होंने स्कूलों में एडमिशन लिया है.
कौन निकला आगे, कौन पीछे?
रिसर्च में कई बातें निकलकर सामने आईं. इसमें एक चौंकाने वाली बात यह भी थी कि महज 1% स्कूली बच्चे ही बाजार में होने वाले गणित को हल कर सके, जबकि बाजार में काम करने वाले 1/3 (एक-तिहाई) बच्चों ने इसे झट से हल कर दिया. रिसर्च में यह पाया गया कि बाजार में काम करने वाले बच्चे इस तरह की कैलकुलेशन तेजी से कर लेते हैं, जबकि स्कूल के बच्चे इसे काफी धीमी गति से हल करते हैं और लिखकर कैलकुलेट करने पर निर्भर रहते हैं. रिसर्च में बताया गया है कि कोलकाता के 201 बच्चों में से 95%, 97% और 98% बच्चों ने तीन अलग-अलग लेन-देन की गणना सही की, लेकिन जब एनजीओ प्रथम ने उन्हें गणित के सवाल दिए, तो केवल 32% बच्चे ही तीन अंकों की संख्या को एक अंक से भाग दे पाए. वहीं केवल 54% बच्चे ही दो अंकों की संख्या में से घटाना कर सके. चौंकाने वाली बात यह थी कि ये सभी बच्चे दूसरी कक्षा में पढ़ चुके थे, इस क्लास में जोड़-घटाना सिखाया जाता है.
दिल्ली के स्कूली बच्चों का क्या हाल?
रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली के 200 स्कूली छात्रों की मैथ्स स्किल्स को भी परखा गया, जिसमें यह पाया गया कि जब छात्रों को स्कूल के तरीके से इन सवालों को सॉल्व करने को कहा गया, तो 56% छात्रों ने भाग वाले सवालों को अच्छे से हल कर दिया, लेकिन जब उन्हें बाजार की गुणा गणित हल करने को दी गई, तो केवल 60% छात्र ही सही उत्तर दे पाए. इसमें भी खास बात यह थी कि इन बच्चों को इसके लिए कागज और पेन का सहारा लेना पड़ा.
First Published :
February 06, 2025, 13:00 IST