Last Updated:February 11, 2025, 18:48 IST
Birth of Hanumans Son Makardhwaj: ब्रह्मचारी होने के बावजूद हनुमान जी पिता कैसे बने यह कहानी बहुत विचित्र है. हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज का जन्म उनके पसीने की बूंद से हुआ, जो समुद्र में गिरने के बाद मछली ने पी ...और पढ़ें
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वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचारी हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज के जन्म का वर्णन मिलता है.
हाइलाइट्स
- हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज का जन्म पसीने की बूंद से हुआ
- मछली ने हनुमान जी के पसीने की बूंद पीकर मकरध्वज को जन्म दिया
- मकरध्वज शक्ति और पराक्रम में हनुमान जी के समान थे
Birth of Hanumans Son Makardhwaj: हनुमान जी ने अपना पूरा जीवन भगवान श्रीराम की सेवा में बिताया और हर कदम पर उनकी रक्षा के लिए तत्पर रहे. हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनका एक पुत्र भी था. वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचारी हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज के जन्म का वर्णन मिलता है. मकरध्वज के जन्म को लेकर सवाल उठता है कि जब हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं तो वे पिता कैसे बने? या दूसरे शब्दों में कहें तो हनुमान जी का पुत्र कैसे उत्पन्न हुआ.
मकरध्वज न केवल हनुमान जी की तरह दिखता था, बल्कि वह शक्ति, बल, पराक्रम में हनुमान जी के ही समान था. आइए जानते हैं हनुमान जी के पुत्र की उत्पत्ति कैसे हुई. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ब्रह्मचारी हनुमान जी के बेटे मकरध्वज का जन्म, हनुमान जी के पसीने की बूंद से हुआ था. यह बूंद समुद्र में गिरी थी और इसे एक मकर यानी मछली ने पी लिया था. उसी पसीने की बूंद से मछली गर्भवती हुई और उससे मकरध्वज का जन्म हुआ.
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क्या है मकरध्वज के जन्म की कहानी
हनुमान जी ने लंका जलाने के बाद समुद्र में कूदकर अपनी पूंछ में लगी आग बुझाई थी. समुद्र में कूदने के समय हनुमान जी के शरीर का तापमान बहुत ज्यादा था. इसी दौरान उनके शरीर से पसीने की एक बूंद समुद्र में गिरी. पसीने की उस बूंद को एक विशाल मछली ने आहार समझकर मुख में ले लिया. पसीने की उन बूंदों से मछली के भीतर एक शरीर का निर्माण हो गया. उस विशाल मछली को अहिरावण के मछुआरों ने पकड़ लिया. उस मछली को अहिरावण के रसोईघर में लाकर काटा गया तो उसके पेट से एक वानर आकृति का मनुष्य निकला. अहिरावण ने उसका पालन पोषण करवाया और उसे पातालपुरी का द्वार रक्षक बना दिया. उसे मकरध्वज नाम अहिरावण ने ही दिया. पौराणिक कथाओं के अनुसार मछली से जन्म लेने के कारण ही हनुमान जी के पुत्र का नाम मकरध्वज पड़ा.
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जब राम-लक्ष्मण को अहिरावण ने बनाया बंदी
जब रावण ने सीता का अपहरण कर उन्हें अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रख लिया तो उन्हें छुड़ाने के लिए राम और रावण के बीच युद्ध हुआ. एक पौराणिक कथा के अनुसार युद्ध के दौरान रावण की आज्ञा से अहिरावण ने राम-लक्ष्मण का हरण कर लिया और पाताल मार्ग से नागलोक में स्थित अपनी पुरी में ले जाकर बंदी बना लिया. राम-लक्ष्मण के अचानक गायब हो जाने से वानर सेना में शोक छा गया. तब विभीषण ने इसका भेद जानकर हनुमान जी को पाताल लोक जाने के लिए प्रेरित किया. तब हनुमान जी प्रभु राम और लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक पहुंच गए. जब हनुमान जी पाताल लोक पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां सात द्वार थे और हर द्वार पर एक पहरेदार था. हनुमान जी ने सभी पहरेदारों को हरा दिया, लेकिन अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली एक वानर पहरा दे रहा था.
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मकरध्वज ने बताई हनुमान जी को पूरी कहानी
वहां द्वार पर अपने ही समान रूप आकार के बलवान वानर को देखकर उन्हें घोर आश्चर्य हुआ. हनुमान जी ने उससे पूछा कि तुम कौन हो? तब मकरध्वज ने कहा कि मैं परम पराक्रमी पवनपुत्र हनुमान का पुत्र मकरध्वज हूं. हनुमान ने उसे डांटते हुए कहा कि क्या बोलते हो? मैं बाल ब्रह्मचारी हूं. तुम मेरे पुत्र कैसे हो गए? यह सुनते ही मकरध्वज अपने पिता हनुमान के चरणों में गिर गया. फिर उसने हनुमान जी को अपने जन्म की कथा सुनाई. हनुमान जी को मकरध्वज की बातों में सच्चाई नजर आई. उन्होंने मान लिया कि वह उनका पुत्र है. हनुमान जी ने कहा कि मुझे भीतर जाने दो अहिरावण मेरे आराध्य श्रीराम और उनके भ्राता लक्ष्मण को बंदी बनाकर ले आया है. मैं उन्हें मुक्त करवाने आया हूं.
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पिता ने मल्लयुद्ध में बेटे को पराजित किया
मकरध्वज ने हनुमान जी से कहा कि आप मेरे पिता हैं, लेकिन जिन्होंने मेरा पालन पोषण किया है उन्होंने मुझे द्वार रक्षक नियुक्त किया है और किसी को भी भीतर जाने की अनुमति नहीं है. मकरध्वज ने कहा कि यदि आपको भीतर जाना है तो मुझसे युद्ध करना होगा. तब पिता-पुत्र में मल्लयुद्ध प्रारंभ हो गया. हनुमान जी ने मकरध्वज को उसी की पूंछ में लपेटकर बांध दिया और भीतर प्रवेश किया.
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श्रीराम ने बनाया पातालपुरी का अधीश्वर
अंदर जाकर हनुमान जी ने अहिरावण का वध करके राम-लक्ष्मण को मुक्त करवाया और अपने कंधे पर बैठाकर जाने लगे. द्वार पर भगवान श्रीराम ने हनुमान जी की तरह ही दिखाई देने वाले मकरध्वज के संबंध में पूछताछ की. तब हनुमान ने भगवान श्रीराम को सारा किस्सा सुनाया. उसके बाद भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को मुक्त करने का आदेश दिया. भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को आशीर्वाद दिया और उसे पातालपुरी का अधीश्वर नियुक्त किया.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
February 11, 2025, 18:48 IST