महाभारत को युद्ध की कहानी माना जाता है. लिहाजा इसे पढ़ना तो दूर लोग घरों में रखने से मना करते हैं. कहते हैं- “घर में महाभारत रखा तो महाभारत की लड़ाई भी हो जाएगी.” इस कारण से ये दुनिया का अब तक किताब के रूप में छपी सबसे बड़ी रचना लोगों के लिए न पढ़ने वाली किताब जैसी ही रही है. किसी को बहुत जिज्ञासा हुई तो एक संक्षिप्त महाभारत पढ़ ली. लेकिन संपूर्ण महाभारत पढ़े लोग गिने चुने ही मिलते हैं.
हमेशा समकालीन है महाभारत
ये एक ऐसा ग्रंथ है जिसके बारे में साफ और सीधे तौर पर कहा जाता है कि जो महाभारत में नहीं है, वो कहीं और नहीं है. इसका मतलब ये है कि सभी भारतीय कथाएं किसी न किसी रूप में महाभारत में जरूर मिल जाती है. इसकी व्यपकता और विषय वस्तु देख कर बहुत सारे लोग भावना में इसे पांचवे वेद की संज्ञा भी दे देते हैं. हालांकि इसकी भी जरुरत नहीं है. क्योंकि जिन्होंने एकेडेमिक तौर पर पढ़ाई की होगी, उन्हें पता है कि वेद कितने हैं. और वेदों की विषय वस्तु क्या है. आज कई मामलों में वेदों की समकालीनता पर सवाल उठाया जा सकता है, लेकिन महाभारत कि चिंताएं इतनी व्यापक हैं कि ये शायद ही कभी अप्रासंगिक माना जाय. ये एक ऐसा ग्रंथ है जो आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेगा.
माना जाता है कि वेद व्यास ने महाभारत रची और बोल कर भगवान गणेश से इसे लिखवायी.
अगर एकेडेमिक स्तर पर समझने का प्रयास किया जाय तो एक लाख श्लोकों वाला ये महाकाव्य दो ग्रंथों से मिल कर बना है. हिंदी और संस्कृत की ऊंची कक्षाओं में पढ़ाया जाता है कि ‘जय’ और ‘भारत’ नाम के दो ग्रंथ अलग अलग कालखंडों में रचे गए. रचनाकार एक हैं या अलग अलग इस पर विद्वानों में सहमति नहीं है. लेकिन दोनों की भाषा और प्रवाह को देखते हुए ये मानना मुश्किल होता है कि दो अलग रचनाकारों ने हर तरह की समरूपता वाला एक इतना बड़ा ग्रंथ लिखा हो. जय की प्रमाणिकता को इस महाकाव्य का पहला श्लोक भी स्थापित करता है –
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नारायणम।
देवीं सरस्वतीं व्यासं, ततो जयमुदीरयेत।।
इस श्लोक में कहा गया है कि नर और नारायण ऋषि को प्रणाम करके, फिर देवी सरस्वती और वेदव्यास को नमन करके तब जय को पढ़ना चाहिए. यहां तक इस ग्रंथ का नाम जय है. हालांकि बहुत से लोग पूरे ग्रंथ का नाम ही जय या महाभारत मानते हैं. बहरहाल, हमारा विषय ये था कि महाभारत को घर में नहीं रखना चाहिए. न ही इसे पढ़ना चाहिए. इसे रखने और पढ़ने से घर में महाभारत हो जाता है. तो ये धारण बिल्कुल गलत है. ऐसी धारणा क्यों आई होगी इस पर भी आगे विचार किया जाएगा. महाभारत नाम का ये ग्रंथ इस समय ये किताब दस मोटे-मोटे खडों में उपलब्ध है. पढ़ पाने योग्य अपेक्षाकृत मोटे अक्षरों वाली इस किताब का कुल वजह 60 पाउंड के करीब होता है. इसमें कुल एक लाख श्लोक हैं.
महाभारत देखने से घर में नहीं मचा महाभारत !
प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के निदेशक और हिंदी, संस्कृत और गढ़वाली एकेडिमियों के पूर्व सचिव जीतराम भट्ट तर्क देते हैं – “जब टेलीविजन पर महाभारत सीरीयल चल रहा था और सब लोग देख रहे थे तो उस समय तो नहीं सुनने में आया कि घर घर में महाभारत हो रहा है.” वे कहते हैं कि जिस ग्रंथ का हिस्सा में गीता जैसी गूढ़ और दिव्य विद्या हो उसे जरूर पढ़ना चाहिए. भट्ट के मुताबिक इसका पता तो नहीं चलता कि कब लोगों ने इसे न रखने और न पढ़ने वाला ग्रंथ मान लिया. वे संकेत करते हैं कि हो सकता है जिन्हें ज्ञान को सबके पास न जाने देना हो उन लोगों ने इस तरह के प्रचार किया हो. संस्कृत के जानकार भट्ट याद दिलाते हैं कि आखिर गीता ही वो पुस्तक है जिसकी शपथ कोर्ट में भी मानी जाती है.
पढ़ना जरूरी क्यों?
तो फिर इस पुस्तक को पढ़ना क्यों चाहिए. ये सवाल जब उठता है तो इसकी सीधी वजह है इस महाकाव्य की कथावस्तु. साथ की मूल कथावस्तु के साथ क्षेपक कथाओं के तौर पर बहुत सारी कहानियां है. यही वो कहानियां है जो अलग अलग पुस्तकों की मूल कथा बनी हुई हैं. इन्ही क्षेपकों के कारण ये बड़ी सहजता से कहा जाता है कि जो कुछ कहीं भी है, वो महाभारत में है. जो महाभारत में नहीं है वो कहीं नहीं है. इसका आशय ये होता है कि जो भी कहानी कहीं और चल रही है, वो कथा महाभारत में जरूर है. यानी इसे पढ़ने से आपको कथा का सही और वास्तविक स्वरूप पता चल जाता है.
हर समस्या का समाधान है महाभारत
इसकी उपयोगिता को रेखांकित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और धर्म विषयों के जानकार इष्टदेव सांकृत्यान का कहना है – ” ये वो कहानी है जो बताती है कि कोई समस्या आपको नष्ट करे उससे पहले उस समस्या को खत्म कर दो. इसके लिए कथा में रास्ता भी बताया गया है. वो भी हर परिस्थिति के लिए.” महाभारत न पढ़ने की रिवायत और दंतकथा के बारे में वे कहते हैं कि ये समझ से परे है कि इस तरह की शानदार किताब को पढ़ने से क्यों और कब मना किया गया हो. उनका कहना है -“अब तो कहा जाना चाहिए, जिस घर में महाभारत है उसी घर की जीत होनी है. “
तो फिर क्यों पढने से मना किया जाता है
ये वो पुस्तक है जिसमें धर्म के वास्तविक स्वरूप का वर्णन किया गया है. इसमें दिखाया गया है कि वर्ण और कार्यवितरण के आधार पर भेदभाव करने का कुप्रभाव क्या होता है. यही वो पुस्तक है जो धर्म के नाम पर प्रचलित कुप्रथाओं को समाप्त करती दिखती है. महाभारत पढ़ने से साफ हो जाता है कि धर्म के नाम पर बहुत सारी बातें धर्मगुरुओं ने खुद ही संस्कृत के श्लोक गढ़ कर लोगों में प्रचलित कर दिए हैं. क्योंकि जिसे कर्मकांड कहा जाता है उस धर्म के बारे में बहुत सारी वेदों से बिल्कुल नहीं ली गई हैं. अलग अलग पुराण उसके अलग रूप बताते हैं, लेकिन महाभारत में सारे लोग जो बरत रहे होते हैं वो सब धर्मसम्मत होता है.
जो कुछ धर्म विरुद्ध किया गया है उसकी पर्याप्त निंदा भी की गई है. लिहाजा जाहिर हो जाता है कि वो काम धर्म के अनुकूल नहीं है. क्षेपकों में ऐसी बहुत सारी कहानियां हैं. इन कहानियों से पता चल जाता है कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है. गीता का तो सवाल ही यही है कि कर्म क्या है और अकर्म क्या है. यानी धर्म और कर्म दोनों की जानकारी पढ़ने वालों को हो जाती है. इस लिहाज से ऐसे व्यक्ति को बेवजह के टोटके में फंसा पाना मुश्किल होता है. यही कारण है कि एक पूरा मिथक चला दिया गया कि महाभारत पढ़ना ही नहीं चाहिए. इसलिए कहा जा सकता है कि अगर पाखंड से बच कर धर्म का आचारण करना है और कल्याण की ओर बढ़ना है तो महाभारत पढ़ना उपयोगी है.
Tags: Mahabharat, Sanskrit language
FIRST PUBLISHED :
October 7, 2024, 15:29 IST