प्रसाद तैयार करते कारीगर
पटना. देश के सबसे शुद्ध प्रसाद की लिस्ट में पटना स्थित महावीर मंदिर के नैवेद्यम का नाम सबसे ऊपर आता है. नैवेद्यम प्रसाद न केवल स्वाद और शुद्धता का प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों की असीम श्रद्धा और भक्ति का जीवंत उदाहरण भी है. महावीर मंदिर में चढ़ाया जाने वाला यह प्रसाद भक्तों के लिए एक मिठाई मात्र नहीं, बल्कि भगवान हनुमान जी की कृपा का प्रतीक है. नैवेद्यम का हर लड्डू मानो भक्तों की आस्था को समर्पित होता है, जो भगवान के चरणों में अर्पित होने के बाद भक्तों के जीवन में मिठास और शांति का संचार करता है.
पिछले 32 वर्षों से नैवेद्यम की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, और इसे घरों में भक्तजन बड़े आदर और श्रद्धा के साथ रखते हैं. इस प्रसाद का अनोखा स्वाद, शुद्धता और पवित्रता इसे अन्य मिठाइयों से कहीं ऊपर रखता है. न केवल इसका स्वाद, बल्कि इसकी शुद्धता पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. इस आस्था से जुड़े नैवेद्यम को भारत सरकार द्वारा ‘भोग’ सर्टिफिकेट से सम्मानित किया गया है, जो इसकी शुद्धता और पवित्रता का प्रमाण है.
प्रसाद और पानी की गुणवत्ता की होती है जांच
महावीर मंदिर के इस नैवेद्यम की तैयारी में नंदिनी घी का प्रयोग किया जाता है, जिसकी हर खेप लैब जांच के बाद ही खरीद की है. हर तीन महीने पर इस प्रसाद और पानी की गुणवत्ता की जांच की जाती है, ताकि भक्तों को शुद्धता और पवित्रता से युक्त प्रसाद प्राप्त हो सके. इस प्रसाद के साथ जुड़ी आस्था और भक्ति इसे भगवान हनुमान जी के आशीर्वाद के रूप में प्रस्तुत करती है, जो भक्तों को सच्ची सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करता है.
ब्रह्म मुहूर्त में बनता है यह प्रसाद
नैवेद्यम को दक्षिण भारत के कारीगर पूरी पवित्रता एवं शुद्धता के साथ बनाते हैं. ये आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के रहने वाले हैं साथ ही पूर्व में तिरुपति मंदिर में काम कर चुके हैं. राजधानी के बुद्ध मार्ग में एक कारखाना तैयार किया गया है जिसका नाम पाणिनी परिसर है. यहां करीब 120 कारीगर प्रतिदिन अलग अलग शिफ्ट में काम करते हैं. नैवेद्यम बनाने वाले तिरुपति के कारीगरों के प्रमुख शेषाद्री का कहना है कि प्रसाद बनाने में सभी कारीगर रात दो बजे से ही जुट जाते हैं. सभी स्नान के बाद पूजा पाठ करके साफ किये हुए कपड़ों को धारण करते हैं और फिर प्रसाद बनाते हैं. रात के दो बजे से दोपहर के एक बजे तक कारीगर काम में लगे रहते हैं. एक दिन में लगभग 10000 किलोग्राम नैवेद्यम बनाने की क्षमता है.
ऐसे बनता है नैवेद्यम
नैवेद्यम बनाने के लिए पटना में महावीर मंदिर का अपना कारखाना है. जिसमें तिरुपति से आए कारीगर बड़े ही शुद्धता और पवित्रता के साथ लड्डू बनाते हैं. नैवेद्यम बनाने के लिए सबसे पहले दाल से बेसन तैयार किया जाता है जो कि कारखाने के ही मिल में तैयार होता है. उसके बाद बेसन को पानी के साथ लगभग 5 – 7 मिनट तक मिक्स किया जाता है. इसके बाद शुद्ध बेसन से बुंदिया तैयार की जाती है. इसके बाद चीनी की चासनी में डालकर उसे मिलाया जाता है. मिलाने के क्रम में ही बुंदिया के साथ-साथ भुना हुआ काजू, किशमिश और इलाइची मिलाया जाता है.
आपको बता दें कि एक कंटेनर में 750 किलोग्राम लड्डू बनाया जाता है जिसमें 3 किलोग्राम इलायची, 22 किलोग्राम किसमिस और 18 किलोग्राम काजू मिलाया जाता है. चासनी में बुंदिया और ड्राई फ्रूट्स का मिश्रण लगभग 45 मिनटों तक होता है. इसके बाद मिश्रण को लड्ड् बांधने वाले प्लेटफॉर्म पर रख दिया जाता है. यहां पर एक साथ 15 से 20 कारीगर खड़े होकर लड्डू बांधते हैं. यहां बैठकर लड्डू बनाने की परंपरा नहीं है. लड्डू बांधने के बाद उसे 250 ग्राम, 500 ग्राम और एक किलो के पैकेट में रखा जाता है . फिर उसे महावीर मंदिर भेज दिया जाता है. महावीर मंदिर से ही नैवेद्यम कई अन्य मदिरों को भेजा जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा खपत महावीर मंदिर में ही होती है.
कहां से आता है रॉ मैटेरियल
नैवेद्यम को बनाने में इसके रॉ मटेरियल का खास ख्याल रखा जाता है. नैवेद्यम बना रहे शेषाद्री ने बताया कि इसको बनाने में मोटा चना दाल का प्रयोग होता है. यह एक ऑस्ट्रेलियन ब्रांड है. अयोध्या सहित अलग अलग मिलो से एल ग्रेड का चीनी मंगाया जाता है. कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के नंदिनी घी के हर खेप की गुणवत्ता रिपोर्ट प्राप्त कर ही घी लिया जाता है. काजू, और इलायची केरल से आता है. किसमिस कंधार से दिल्ली के इंपोर्टर के जरिए इंपोर्ट किया जाता है.
हर महीने लगभग 15 हजार किलो शुद्ध घी मंगाया जाता है
महावीर मंदिर में अभी औसतन सवा लाख किलो प्रति माह नैवेद्यम की खपत हो रही है. इसके लिए हर महीने लगभग 15 हजार किलो शुद्ध घी मंगाया जा रहा है. आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि प्रत्येक महीने दो खेप में लगभग 94 लाख रुपये का भुगतान शुद्ध भी की खरीद के लिए कर्नाटक मिल्क फेडरेशन लिमिटेड को किया जा रहा है. नैवेद्यम को तैयार करने में चना दाल का बेसन, गाय का शुद्ध घी, काजू, किशमिश और इलाइची का इस्तेमाल किया जाता है. महावीर मन्दिर के पाणिनी परिसर में पूरी सफाई के साथ पहले चना दाल से बेसन तैयार किया जाता है. फिर शुद्ध घी में पकाकर बेसन की बुंदी तैयार की जाती है. उसमें काजू-किशमिश और इलाइची को निश्चित अनुपात में मिलाकर नैवेद्यम तैयार किया जाता है. पूरी प्रक्रिया मशीन से संचालित की जाती है. इसमें हाथों का इस्तेमाल सीधे नहीं किया जाता.
महावीर मंदिर के नैवेद्यम की तैयारी की पूरी प्रक्रिया को देखने से स्पष्ट होता है कि यह प्रसाद सिर्फ स्वाद और शुद्धता का मेल नहीं, बल्कि भक्ति और समर्पण का प्रतीक है. अत्याधुनिक मशीनों और शुद्धता की हर कसौटी पर खरे उतरते इस नैवेद्यम को बनाने में कारीगरों की निष्ठा और भगवान के प्रति उनकी श्रद्धा झलकती है.
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FIRST PUBLISHED :
September 22, 2024, 12:04 IST