कैंसर की बीमारी दुनियाभर में बड़ी तेजी से फैल रही है। इससे हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। बता दें, कैंसर के कई प्रकार हैं और ये शरीर के अलग-अलग अंगों से जुड़ा हुए हैं। उन्हीं में से एक है फेफड़ों का कैंसर जिसे लंग कैंसर (lungs cancer) कहा जाता है। NIH की रिपोर्ट की मानें तो, फेफड़ों के कैंसर के लिए सिगरेट पीना सबसे बड़ा कारण है। यह 10 में से 7 से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है। लेकिन हाल ही में हुई एक स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस स्टडी के मुताबिक, कभी भी सिगरेट नहीं पीने वाले लोगों में भी फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
‘द लांसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन जर्नल’ की एक स्टडी में यह पाया गया है कि धूम्रपान नहीं करने वालों में भी फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है क्योंकि पहले फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान को ही माना जाता था। अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब लोग धूम्रपान नहीं कर रहे हैं, तो आखिर उनके फेफड़ों में कैंसर क्यों हो रहा है? इस स्टडी के मुताबिक, इसका प्रमुख कारण कुछ और नहीं बल्कि वायु प्रदूषण है। ऐसे में नई दिल्ली में स्थित पीएसआरआई अस्पताल में वरिष्ठ कंसल्टेंट हेमेटोलॉजिस्ट और ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. अमित उपाध्याय बता रहे हैं आखिर प्रदूषण से फेफड़ों का कैंसर कैसे होता है, इसके लक्षण क्या हैं, किन लोगों को यह बीमारी होने की संभावना ज़्यादा है और बचाव के लिए क्या करना चाहिए?
क्या कहती है स्टडी?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी सहित अन्य संगठनों के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर फेफड़ों के कैंसर के मामलों का अनुमान लगाने के लिए ‘ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी' डेटा का विश्लेषण किया। शोधकर्ताओं के मुताबिक़, एडेनोकार्सिनोमा (ऐसा कैंसर जो बलगम और पाचन में मदद करने वाले तरल पदार्थ उत्पन्न करने वाली ग्रंथियों में शुरू होता है) जो पुरुषों और महिलाओं में प्रमुख रूप से पाया गया है। इस सर्वे में दुनिया भर में कभी धूम्रपान नहीं करने वालों में फेफड़े के कैंसर के 53-70 प्रतिशत मामले पाए गए। शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘‘विश्व भर के कई देशों में धूम्रपान का प्रचलन कम होता जा रहा है, लेकिन इसके बाद भी कभी धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों में फेफड़े के कैंसर का अनुपात बढ़ रहा है।
प्रदूषण से फेफड़ों का कैंसर कैसे होता है?
अगर हम फेफड़ों में कैंसर के लक्षण के कारणों पर ध्यान दें तो पाते हैं कि इसमें कई फैक्टर भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है वायु प्रदूषण। वाहनों से निकलने वाला धुआं जिसमें हानिकारक सूक्ष्म कण (microscopic particles) मौजूद होते हैं, फेफड़ों के लिए बेहद नुकसानदायक है। इसी तरह, फैक्ट्रियों और उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषित धुआं भी हवा में मिलकर वातावरण को विषाक्त बना देता है। ये सूक्ष्म कण जब हम सांस के जरिए अंदर लेते हैं, तो ये फेफड़ों की सतह को नुकसान पहुंचाते हैं और गहराई तक जाकर फेफड़ों के टिशू को प्रभावित करते हैं।
इसके अलावा, कुछ हानिकारक रसायन जैसे कि रेडॉन गैस और बेंजीन आधारित केमिकल्स भी फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं। ये रसायन हवा के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और खून के माध्यम से पूरे शरीर में फैल सकते हैं, जिससे अन्य प्रकार के कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। इस प्रकार, वायु प्रदूषण एक गंभीर और तेजी से बढ़ता हुआ खतरा बन चुका है, जो न केवल फेफड़ों के कैंसर बल्कि अन्य प्रकार के कैंसर के मामलों में भी वृद्धि कर रहा है।
फेफड़ों में कैंसर के लक्षण:
- बार-बार फेफड़ों का इंफेक्शन होना
- लंबे समय तक रहने वाली खांसी
- भूख कम लगना और वजन कम होना
- बार-बार सांस की नली में सूजन होना।
- सांस लेने में तकलीफ
- आवाज में बदलाव
- वजन कम होना
- थकान
फेफड़ों के कैंसर होने का जोखिम सबसे ज़्यादा किसे है?
प्रदूषण से वैसे तो सभी लोग प्रभावित होते हैं, लेकिन जो लोग लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रह रहे हैं उनमें फेफड़ों के कैंसर की संभावना ज़्यादा होती है। इसके अलावा जो लोग बड़े शहरों में रहते हुए लगातार प्रदूषण के सम्पर्क में आते हैं। ऐसी लोग भी फेफड़ों के कैंसर की चपेट में तेजी से आते हैं। साथ ही कारखानों, निर्माण और रासायनिक संयंत्रों में काम करने वाले लोग भी खतरनाक पदार्थों और हानिकारक गैसों के संपर्क में आते हैं, जिससे उनमें फेफड़े के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, बच्चे और बुजुर्ग की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, इसलिए वे फेफड़े के कैंसर जैसी श्वसन संबंधी बीमारियों के शिका होते हैं।
फेफड़ों के कैंसर को रोकने के लिए क्या करें?
लंग कैंसर के मरीजों की बढ़ती लिस्ट हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि साफ हवा और प्रदूषण रहित पर्यावरण की दिशा में ठोस कदम उठाना अब पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है। वायु प्रदूषण को खत्म तो नहीं किया जा सकता है लेकिन कुछ उपाय अपनाकर फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जैसे:
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एक्यूआई चेक करें: आप चाहे जिस भी शहर में रहें हमेशा वहां का एक्यूआई (Air Quality Index) चेक करें ताकि बचाव के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें। जैसे अगर शाम के समय प्रदूषण ज़्यादा होता है तो उस समय अपने घर से बाहर न निकलें।
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एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें: अपने घर में अच्छी गुणवत्ता वाले एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। एयर प्यूरीफायर घर की हवा से प्रदूषण को निकाल कर फ्रेश एयर देता है।
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मास्क पहनें: जहां आप रह रहे हैं अगर वहां प्रदूषण ज़्यादा है तो जब भी बाहर जाएं एन95 और अच्छे क्वालिटी वाले मास्क पहनकर जाएं। मास्क हवा में मौजूद छोटे कणों को रोकते हैं, जिससे हानिकारक प्रदूषक तत्वों का प्रवेश कम होता है।
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अच्छा खाना खाएं: अपनी डाइट में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाद्य पदार्थ का सेवन करें। ये खाद्य पदार्थ लोगों के शरीर में उत्पन्न होने वाले ऑक्सीडेटिव तनाव से लड़ने में मदद करते हैं
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वार्षिक जांच कराएं: ऑन्कोलॉजिस्ट द्वारा वार्षिक जांच के माध्यम से कैंसर का शीघ्र पता लगाने से उच्च जोखिम वाले लोगों को नैदानिक मानकों के अनुसार अधिक प्रभावी उपचार प्राप्त करने में मदद मिलती है।
(ये आर्टिकल सामान्य जानकारी के लिए है, किसी भी उपाय को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें)
Source: NIH, PTI