Agency:Local18
Last Updated:January 21, 2025, 14:04 IST
Kerala women decease penalty: केरल में हाल के फैसलों ने न्याय प्रणाली की भूमिका पर चर्चा बढ़ा दी है. ग्रीष्मा को मिलाकर, प्रदेश में अब तक 3 महिलाओं को मौत की सजा सुनाई गई है.
तिरुवनंतपुरम में हाल ही में शेरोन हत्याकांड में दोषी पाई गई ग्रीष्मा को फांसी की सजा सुनाई गई. इसके साथ ही केरल में मौत की सजा का इंतजार कर रहे दोषियों की संख्या बढ़कर 39 हो गई है. खास बात यह है कि इनमें दो महिलाएं शामिल हैं—ग्रीष्मा और शांताकुमारी हत्याकांड की आरोपी रफीका बीवी. हालांकि, केरल में अब तक तीन महिलाओं को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है.
केरल की पहली महिला को फांसी की सजा
मार्च 2006 में कोल्लम विधुकुमारन थंबी हत्याकांड के चलते बिनीता कुमारी को मौत की सजा सुनाई गई थी. वह केरल की पहली महिला थीं, जिन्हें यह सजा मिली. उस वक्त बिनीता की उम्र 35 साल थी. हालांकि, कोल्लम जिला सत्र न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बाद में बदलकर आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. फिलहाल, बिनीता अट्टाकुलंगरा जेल में अपनी सजा काट रही हैं.
रफीका बीवी: एक और महिला को मौत की सजा
रफीका बीवी को 2024 के विझिंजम शांताकुमारी हत्याकांड के मामले में मौत की सजा सुनाई गई. यह फैसला नेय्यत्तिनकारा के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश एएम बशीर ने दिया. इसके साथ ही ग्रीष्मा और रफीका का नाम केरल में मौत की सजा पाने वालों की सूची में जुड़ गया.
अब तक की सबसे बड़ी सजा
पिछले साल रंजीत श्रीनिवासन हत्याकांड में राज्य में सबसे बड़ी सजा सुनाई गई थी. इस मामले में 15 लोगों को फांसी की सजा दी गई, जो केरल के इतिहास में किसी एक मामले में सबसे ज्यादा दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा थी.
अन्य चर्चित मामले और मौत की सजा
अलुवा में एक मजदूर की बेटी की हत्या और मूकन्नूर नरसंहार के आरोपियों को भी मौत की सजा दी गई. इसके अलावा, फोर्ट पुलिस थाने के एएसआई जीतकुमार हत्याकांड के आरोपी और पेरुंबवूर की कानून की छात्रा के हत्यारे अमीरुल इस्लाम को भी फांसी की सजा सुनाई गई.
केरल की जेलें और फांसी का इतिहास
तिरुवनंतपुरम और कन्नूर की सेंट्रल जेलें फांसी के लिए कुख्यात मानी जाती हैं. केरल में आखिरी बार 1991 में कन्नूर जेल में रिपर चंद्रन को फांसी दी गई थी, जिसने 14 लोगों की हत्या की थी. उससे पहले 1974 में कालियाकिविला के अज़ाकेसन को फांसी दी गई थी.
मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट और दया याचिकाएं
ट्रायल कोर्ट से मौत की सजा मिलने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट अधिकतर मामलों में सजा को आजीवन कारावास में बदल देता है. इसके अलावा, दोषी राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर मौत की सजा से बचने का प्रयास करते हैं. भारत में सबसे हालिया फांसी 2020 में निर्भया कांड के चार दोषियों को दी गई थी.
First Published :
January 21, 2025, 14:04 IST