नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को दक्षिणी फ्रांस के कैडराचे में दुनिया के सबसे उन्नत संलयन ऊर्जा परमाणु रिएक्टर का निरीक्षण करेंगे. आपको बता दें कि ये वही जगह है जहां दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पृथ्वी पर "मिनी सन" बनाने के प्रयास में जुटे हैं. ITER (इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर) या "द वे" नामक यह परियोजना दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा की असीमित आपूर्ति प्रदान करना चाहती है और इसकी लागत 22 बिलियन यूरो से अधिक है. यह सात देशों - अमेरिका, रूस, दक्षिण कोरिया, जापान, चीन, भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) का एक अभूतपूर्व सहयोग है, इन सभी का लक्ष्य "पृथ्वी पर आदित्य" बनाना है.
खास बात ये है कि इस परियोजना में हर जगह मेड इन इंडिया लिखा हुआ है, और इसका उद्देश्य "धरती पर मित्र" का उपयोग करना है. इस प्रोजेक्ट पर खर्च होने वाले 17,500 करोड़ रुपये में से भारत लगभग 10 फीसदी का सहयोग करेगा जबकि वह इस टेक्नोलॉजी का 100 फीसदी एक्सेस कर पाएगा. यह सबसे महंगा मेगा-साइंस प्रयास है जिसमें भारत विश्व स्तर पर इसका भागीदार बन रहा है. ITER पृथ्वी पर 21वीं सदी में शुरू की जाने वाली सबसे महंगी विज्ञान परियोजना है.
भारत ने इस परियोजना में सबसे बड़े घटक का भी योगदान दिया है - दुनिया का सबसे बड़ा रेफ्रिजरेटर जिसमें यह अनूठा रिएक्टर है, को लार्सन एंड टुब्रो द्वारा गुजरात में बनाया गया है. इसका वजन 3,800 टन से अधिक है और इसकी ऊंचाई कुतुब मीनार से लगभग आधी है. ITER रिएक्टर का कुल वजन लगभग 28,000 टन होगा. द सन एक प्राकृतिक ऊर्जा का भंडार है और यदि सौर ऊर्जा बंद हो गई तो पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाएगा. वैज्ञानिकों के बीच एक चुटकुला काफी प्रचलित है. इसके तहत वैज्ञानिक कहते हैं कि इस फ्युजन एनर्जी का इस्तेमाल कब से किया जाएगा और उत्तर होता है दो दशक बाद और ये बात 1980 से ही कही जा रही है.
कहा जा रहा है कि न्यूक्लियर फ्यूजन पर अपनी बादशाहत कायम करने की कोशिश कर रहे वैज्ञानिक इस सूरज को इतना ताकतवर बना रहे हैं कि इसके एक ग्राम परमाणु ईंधन से 8 टन तेल के बराबर ऊर्जा बन सके. वैसे तो न्यूक्लियर फ्यूजन वह प्रक्रिया है जो हमारे असली सूरज और अन्य सितारों में प्राकृतिक रूप से होती है लेकिन अब इसे धरती पर कृत्रिम रूप से करने की कोशिश की जा रही है.
आपको बता दें कि ये प्रक्रिया इतनी भी आसान नहीं है. हालांकि, वैज्ञानिक इस असंभव सी दिखने वाली प्रक्रिया को संभव करने में जुटे हैं. उम्मीद की जा रही है कि इस न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए बिना ग्रीन हाउस गैस निकले औऱ बिना रेडियो एक्टिव कचरे के जीवाशम ईंधन के उलट असीमित ऊर्जा मिल सकेगी.